स्मार्ट सिटी मिशन: क्या भारत के शहर वास्तव में स्मार्ट बने?
क्या आपका शहर स्मार्ट हो गया है शहरों को स्मार्ट करने के नाम पर कहीं आपको बेवकूफ तो नहीं बनाया गया दिल्ली का नाम तो पहले 20 शहरों में था जिन्हें स्मार्ट बनाया जाना था लेकिन दिल्ली में ट्रैफिक जाम की हालत में क्या कोई खास सुधार हुआ साफ सफाई का ढांचा भी राजधानी में बेहतर नहीं हो सका प्रगति मैदान के पास बने इस टनल की क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं जब तब इसकी मरम्मत होती रहती है और इसका एक हिस्सा आज तक चालू नहीं हो सका दिल्ली में हजारों करोड़ रुपए लगाकर फ्लाई ओवर और टनल अंडरपास बनाए जा रहे हैं और बने भी हैं लेकिन इसके बाद भी चलने फिरने के मामले में दिल्ली स्मार्ट नहीं हो सकी दिल्ली के लोगों के लिए जाम का अनुभव नहीं बदला तो हमें सोचना चाहिए कि जिस शहर में हजारों करोड़ रुपए लगाकर यह सब किया गया वहां जाम की हालत खराब क्यों है 31 मार्च 2025 को स्मार्ट सिटी मिशन की डेडलाइन खत्म हो गई स्मार्ट सिटी केवल केंद्र सरकार की योजना नहीं है राज्य सरकार की भी इसमें हिस्सेदारी है दिसंबर 20224 में केंद्र सरकार ने संसद में जवाब दिया कि इसका बजट 88000 करोड़ से ज्यादा का है जिसमें केंद्र सरकार का योगदान करीब 47000 करोड़ से अधिक का है राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का योगदान करीब 40000 करोड़ से ज्यादा का है तो एक तरह से यह योजना जितनी केंद्र की है उतनी ही राज्यों की भी लेकिन इस योजना के पोस्टर पर केवल प्रधानमंत्री मोदी का फोटो होता है या उनके फोटो या नाम से इस योजना की ब्रांडिंग की जाती है कभी तो हमें इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर को स्मार्ट बनाया गया या नेता स्मार्ट बनकर निकल गए मिसाल के तौर पर यह कोपनहेगन है डेनमार्क की राजधानी 10 साल में इस शहर में साइकिल चलाने के बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए 200 मिलियन डॉलर खर्च किए गए भारतीय रुपए में करीब 1700 करोड़ डेनमार्क में 18925 के लिए पहली लेन बनाई गई थी आज कोपेनहेगन में 239 मील लंबी साइकिल ट्रैक है पूरे डेनमार्क में 4770 किमी साइकिल ट्रैक है जिस पर साइकिलें चलाई जाती हैं तो यह होता है नया और बड़ा लक्ष्य हासिल करना साइकिलिंग के मामले में यह दुनिया के बेहतरीन शहरों में अव्वल माना जाता है भारत में भी स्मार्ट सिटी के 10 साल हो गए क्या भारत ने 100 में से किसी एक शहर में इस तरह का कोई भी लक्ष्य या स्मार्टनेस हासिल किया है आप कह सकते हैं कि भारत में साइकिल चलाने के लिए मौसम अनुकूल नहीं है लेकिन यह बहाना भर है सार्वजनिक परिवहन के मामले में भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार ने बहुत बेहतर नहीं किया है ना ही इसे प्राथमिकता में ऊपर रखा है पब्लिक ट्रांसपोर्ट गायब सा नजर आता है और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट ने शहर की सड़कों को बदहाल कर दिया है मोदी सरकार का दावा है कि 91 प्र काम पूरा हो गया है तब तो सरकार को उन 100 शहरों में जश्न मनाना चाहिए कि हमने सारे प्रोजेक्ट पूरे कर लिए या करीब-करीब पूरे हो गए और आपका शहर स्मार्ट बन गया है तो उन शहरों के लोगों को भी पता चलना चाहिए कि उनका शहर स्मार्ट हुआ है
स्मार्ट सिटी मिशन की हकीकत और वास्तविकता
प्रधानमंत्री मोदी तो लॉन्च होने के अगले साल 2016 में ही स्मार्ट सिटी को जन आंदोलन बताने लग गए थे लेकिन शहरों को स्मार्ट बनाने का यह जन आंदोलन शहर को कितना बदल पाया है य स्मार्ट सिटी कांसेप्ट यह सिर्फ इस काम के लिए इतने पैसे दिए जाएंगे वह नहीं है यह अपने आप में एक बहुत बड़ा जन आंदोलन है यह बीते हुई कल के अनुभव के आधार पर उज्जवल भविष्य की नीव रखने का एक सार्थक प्रयास है और मैं अनुभव कर रहा हूं कि यह प्रयोग सफल रहा है अगर स्मार्ट सिटी मिशन ने भारत के 100 शहरों की सूरत बदल दी होती तो नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत को नहीं लिखना पड़ता वह भी 2025 में कि भारत के शहरों को प्लानिंग की जरूरत है अमिताभ कांत ने ट्वीट भी किया कि भारत के शहर अब एकदम दरकने के मुहाने पर पहुंच गए हैं आबादी बहुत है प्रदूषण बहुत है स्वास्थ्य व्यवस्था खराब है 10 साल तक स्मार्ट सिटी मिशन चला सवाल तो बनता है कि आपका शहर कितना स्मार्ट हो गया यूपी के 13 शहर क्या स्मार्ट हो गए बरसात में सड़कों पर पानी बहना क्या बंद हो गया वहां जाम की समस्या क्या खत्म हो गई स्मार्ट सिटी में बिहार के केवल चार शहरों को लिया गया पटना भागलपुर मुजफ्फरपुर और बिहार शरीफ क्या यह चारों शहर बिहार के स्मार्ट हो गए हैं क्या भागलपुर के लोगों को भागलपुर अब स्मार्ट लगने लगा है जिन शहरों में सारे प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं या जिन शहरों में कुछ अधूरे भी हैं दोनों शहरों का हाल आप बताइए क्या भारत के 100 शहर आपके शहर स्मार्ट हो गए हैं इन चार शहरों के अलावा बिहार के चार शहरों के अलावा रांची बरेली झांसी सहारनपुर वाराणसी लुधियाना ठाणे लखनऊ सोलापुर मुरादाबाद कानपुर और भुवनेश्वर के लोग भी इस सवाल का जवाब दे सकते हैं कि आपके शहर में ऐसा क्या हो गया जिससे आपको लगने लगा है कि आपका शहर स्मार्ट हो गया स्मार्ट सिटी क्लाइमेट मिशन का यह एनिमेशन फिल्म देखिए इस तरह के एनिमेशन से तो यही सपना जगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शहरों को लेकर एक सपना देखा है वही सपना आप भी देखते रहिए भूल जाइए कि कार्टून फिल्म देख रहे हैं या स्मार्ट सिटी देख रहे हैं और आपका शहर इस तरह से स्मार्ट हो जाएगा सपनों में खो जाइए हमारा कहना है कि इस एनिमेशन वीडियो में जिस तरह से दिखाया जा रहा है क्या उसी तरह से शहर को स्मार्ट नहीं होना चाहिए क्या कोई भी शहर इसके जैसा इसके करीब-करीब स्मार्ट हुआ अखबारों में तो और भी बढ़ा चढ़ाकर तस्वीरें छाप दी जाती हैं ग्राफिक्स डिजाइन से नए-नए शहर बना दिए जाते हैं जिससे लगता है कि हमारा शहर रातों-रात सिंगापुर या बुडापेस्ट हो जाएगा लेकिन क्या ऐसा हुआ केंद्र सरकार के इन पोस्टरों में जैसा दिखाया गया है क्या वैसा हुआ 2006 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि बिल्डर अगर अपने ब्रोशर या प्रचार सामग्री में जिस तरह की सुविधाएं दिखाता है वैसा ही बनाकर देना होगा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद आयोग के भी इस संबंध में इसी तरह के फैसले हैं कई बार बिल्डर पोस्टर में बड़े-बड़े दावे करते हैं फोटो लगा देते हैं लेकिन पूरा नहीं करते तो क्या भारत सरकार पर यह दायित्व नहीं बनता कि आपने जिस शहर के लोगों को को जिस तरह से पोस्टर में दिखाया
दिल्ली: स्मार्ट सिटी या ट्रैफिक और प्रदूषण का शहर?
उसी तरह से शहर स्मार्ट बनकर दिखाना चाहिए था एक और जुमले का अंत हुआ सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन स्कीम को बंद कर दिया है इस स्कीम के तहत 100 स्मार्ट सिटीज बननी थी सरकार के ही मुताबिक सिर्फ 16 बन पाई है 84 स्मार्ट सिटीज में 144000 करोड़ रुपए का काम अभी अधूरा पड़ा हुआ है यह अलग बात है कि 10 साल में तीन बार डेडलाइन बढ़ाई गई आपको याद ही होगा बहुत ढोलबाजे के सा साथ 2015 में ये लॉन्च हुई थी 2016 में 60 स्मार्ट सिटीज दे बनाई गई की बात थी फिर उसमें 30 और ऐड करी गई फिर 10 और ऐड करी गई होते-होते 100 स्मार्ट सिटी मार्च 2023 तक बननी थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया सरकार के ही मुताबिक सिर्फ 16 बन पाई है और उसकी भी असलियत अभी आपको बताते हैं लेकिन 84 सिटीज में 144000 करोड़ का काम अधूरा पड़ा हुआ है तो स्मार्ट सिटी का मापदंड क्या है कैसे एक सिटी स्मार्ट सिटी बनने की बात थी पहली चीज जल और बिजली की पूरी आपूर्ति एडिक्ट सप्लाई पावर एज वेल एज इलेक्ट्रिसिटी दूसरा सैनिटेशन और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट तीसरा पब्लिक ट्रांसपोर्ट अच्छा होना चाहिए चौथा ई गवर्नेंस और डिजिटलाइजेशन आईटी रोबट सिस्टम होने चाहिए नागरिकों का पार्टिसिपेशन होना चाहिए पर्यावरण को लेकर सस्टेनेबल एनवायरमेंट की बात थी इसके साथ ही साथ बात थी कि नागरिक कैसे सुरक्षित रहेंगे और शिक्षा और स्वास्थ्य की उम्दा व्यवस्था कैसे बनेगी असलियत यह है कि सरकार के मु 16 स्मार्ट सिटीज पूरी हो चुकी है उसमें बरेली है उसमें राची है उसमें वाराणसी है उसमें वडोदरा है उसमें पुणे है क्या इन शहरों में आपको यह सारे मापदंड दिख रहे हैं उन शहरों में बड़ी-बड़ी खुदी सड़कें स्मार्ट सिटी के नाम पर जरूर दिख रही है लेकिन यह मापदंड पूरे नहीं हुए स्मार्ट सिटी क्या है आप भी जानना चाहेंगे कि अगर मोदी सरकार भारत के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी में बदलना चाहती है तो उसे आप कैसे समझेंगे उसकी अवधारणा क्या है कैसे जज करेंगे कि शहर स्मार्ट हुआ या नहीं सरकार को शायद शुरू से पता था कि एक दिन जब जनता घंटों जाम में फंसे फसे धर्म के नशे से जागेगी तो पूछ सकती है कि यह क्या स्मार्ट हुआ भला तो देखिए किस तरह की चालाकी पहले ही दर्ज की जा चुकी है आपको स्मार्ट सिटी का मिशन स्टेटमेंट पढ़कर सुना रहा हूं लिखा है प्रथम प्रश्न यह है कि स्मार्ट सिटी का तात्पर्य क्या है इसका उत्तर यह है कि एक स्मार्ट सिटी की कोई सर्व मान्य परिभाषा नहीं अतः स्मार्ट सिटी की अवधारणा विकास के स्तर परिवर्तन और सुधार के लिए इच्छुक होने और संसाधनों और शहर के निवासियों की आकांक्षाओं के आधार पर शहर दर शहर और एक देश से दूसरे देश के मामले में भिन्न है स्मार्ट सिटी के लिए यूरोप की अपेक्षा भारत में इसका अर्थ अलग होगा
क्या अन्य शहरों में कोई बदलाव आया?
भारत में भी स्मार्ट सिटी को परिभाषित करने का कोई एक तरीका नहीं शुरू में ही कह दिया गया यूरोप के स्मार्ट सिटी की तुलना भारत के स्मार्ट सिटी से मत कीजिए क्योंकि पता था कि वैसा उस तरह की स्मार्ट सिटी आप नहीं बना सकते इसलिए इस तरह की बातें डाल दी गई मिशन स्टेटमेंट में ही चालाकी कर दी गई ताकि बाद में जब हिसाब मांगा जाए तो कह दिया जाए भागलपुर के लोग स्मार्ट सिटी का जो मतलब समझ रहे हैं वो कोपेनहेगन के स्मार्ट सिटी से काफी अलग है परिभाषा सर्वमान्य नहीं है तो योजना का एक नाम क्यों रख दिया अलग-अलग शहर के लिए अलग अलग-अलग नाम रखते लेकिन कुछ पैमानों पर तो शहरों का मूल्यांकन किया ही जा सकता है जैसे सफाई के बारे में सार्वजनिक परिवहन के बारे में कचरा और अपशिष्ट के प्रबंधन के बारे में क्योंकि यह सारे तत्व लगभग हर जगह की योजनाओं में हैं 2017 में पटना स्मार्ट सिटी में शामिल किया गया 2023 के स्वच्छता सर्वेक्षण में पटना का स्थान 446 शहरों में 77 वें स्थान पर था पटना के लोग ही बेहतर बता सकते हैं कि साफ सफाई के मामले में उनका पटना कितना स्मार्ट हुआ है पिछले साल अक्टूबर में टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्ट छपी कि 7 साल में पटना में स्मार्ट सिटी के जितने प्रोजेक्ट हैं उनमें से आधे ही पूरे हुए 33 में से 16 प्रोजेक्ट अभी पूरे नहीं हुए पटना को लेकर सीएजी रिपोर्ट से जुड़ी एक खबर भी मिली जिसमें कहा गया है कि कई सारे प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो व्यवहारिक नहीं लगते और पैसों का प्रबंधन भी ठीक नहीं नजर आता आजकल प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक बिहार खूब जा रहे हैं और चुनाव के कारण जाते भी रहेंगे भागलपुर बिहार का पहला शहर था जिसका चयन स्मार्ट सिटी के तहत हुआ एक छोटा सा शहर है इसे तो कम से कम इतना स्मार्ट बना देना चाहिए था कि पटना से लोग भागलपुर के स्मार्टनेस को देखने जाते हम तो गए नहीं लेकिन हिंदी अखबारों में सिर्फ इतना किया कि स्मार्ट सिटी भागलपुर के नाम से सर्च कर दिया तो इस तरह की खबरें निकल कर आने लगी सैंडिस कंपाउंड में 44 करोड़ खर्च कर दिए गए फरवरी 2025 में प्रभात खबर की एक रिपोर्ट है कि भागलपुर में स्मार्ट सिटी योजना के तहत सबसे अधिक पैसा इसी कंपाउंड में खर्च किया गया इस पार्क में भागलपुर की जनता टहलने आती है यहां काम भी हुआ है लेकिन उसका रखरखाव ठीक से नहीं प्रभात खबर की यह रिपोर्ट बताती है कि सैंडिस कंपाउंड में ताला बंद है बात फरवरी की है पार्क में सैंडिस पार्क में ओपन जिम लगा देना शहर के स्मार्ट सिटी की कल्पना में शामिल है अब तो सांसद विधायक अपनी निधि से बेंच और जिम लगवाने लगे हैं लेकिन क्या इस से शहर स्मार्ट हो जाता है गौर से देखेंगे कि शहरों में होने वाले सामान्य से सामान्य काम को भी प्रोजेक्ट में जोड़ दिया गया है फुटओवर ब्रिज पहले भी बनते थे और अब इनका बनाया जाना है
यूरोपीय शहरों से तुलना: कोपेनहेगन और बुडापेस्ट का उदाहरण
स्मार्ट सिटी का होना है इस तरह की बातें शामिल कर प्रोजेक्ट की गिनती बढ़ा दी गई जैसे ट्रैफिक सिग्नल पहले से लगता रहा है अब इसे स्मार्ट सिटी योजना के प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया गया है यह सब काम तो किसी भी शहर में 1 साल के भीतर पूरे हो जाने चाहिए 2021 में मिशन के पांच साल पूरा होने पर भास्कर ने भागलपुर से एक रिपोर्ट की कि 5 साल पहले भागलपुर जहां था अब भी वहीं खड़ा है यह 2021 की बात है भास्कर लिखता है कि ना ट्रैफिक सुधरा ना ही वेंडिंग जोन बने कहने को तिलका मांझी चौक पर सिग्नल लाइट ही लगी है भागलपुर स्मार्ट सिटी को लेकर कई रिपोर्ट में तिलका मांझी चौक का जिक्र मिला कि यहां सुबह शाम बहुत जाम रहता है लेकिन लोगों को या योजना बनाने वालों को लगा ही क्यों कि लाल बत्ती लगा देने से ट्रैफिक जाम की समस्या का अंत हो जाएगा यह कहां लिखा है और यह क्यों सोच लिया गया ट्रैफिक की समस्या तब तक दूर नहीं होगी जब तक शहर में सार्वजनिक बसें नहीं चलेंगी यहां पर जाम लगना बता रहा है कि कारों की संख्या बढ़ गई ई रिक्शा बढ़ गई लोग अपनी बाइक से चलने लग गए तो आप कितनी भी रेड लाइट लगाते जाइए शहर को स्मार्ट कह लीजिए जाम खत्म नहीं होने वाला बात इसकी नहीं कि प्रोजेक्ट अधूरे रह गए या पूरे हो गए बात इस की है कि प्रोजेक्ट पूरे हो गए तब भी क्या वह शहर स्मार्ट हो गया वहां का जीवन स्तर कितना बेहतर हुआ बेहतर हो क्या इसके लिए प्रोजेक्ट बनाए गए थे या स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में कुछ भी ठेल करर ढिंढोरा पीटा गया स्मार्ट सिटी के मिशन स्टेटमेंट में लिखा है कि बुनियादी ढांचा बेहतर किया जाए ताकि जीने का स्तर बेहतर हो किस शहर में जीने का स्तर बेहतर हुआ है आप बताइए कौन सा शहर ऐसा स्मार्ट हो गया कि उसके जैसा आप भी अपने शहर को स्मार्ट होता देखना चाहेंगे हेडलाइन में योजनाओं का बेहतर लगना और जमीन पर उनका उतरना दोनों में बहुत अंतर है हमारे शहर जैसे थे मोटा मोटी वैसे ही हैं कमांड सेंटर बना देना कोई बहुत बड़ी बात नहीं यह कमांड सेंटर का वीडियो है स्मार्ट सिटी योजना के तहत बनाया गया चौराहों और अन्य स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाकर उनकी एक जगह से मॉनिटरिंग की जाती है आज के जमाने में इसे बनाना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन इस देश को अभी तक कंप्यूटर स्क्रीन टीवी स्क्रीन सीसीटीवी लगाकर झांसा दिया जा रहा है जैसे शहरों के प्रबंधन में टेक्नोलॉजी ने क्रांति ला दी है इसे बनाने में कितना ही समय लगेगा आप अंदाजा लगा सकते हैं लेकिन क्या इससे ही आपका शहर स्मार्ट हो जाएगा हमारे शहर जाम से बहुत परेशान है अगर स्मार्ट सिटी मिशन जाम की समस्या दूर नहीं कर पाया
स्मार्ट सिटी: एक अधूरा सपना
तो फिर क्या कर पाया आज बिहार से लेकर तमाम शहरों में भयंकर जाम के कई ठिकाने बन गए शहर में निकलने का मतलब है आधे घंटे का काम तीन घंटे का जाम 10 साल से स्मार्ट सिटी स्मार्ट सिटी कर रहे हैं तब यह हाल है हमने आपको पहले भी हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट का उदाहरण दिया था स्मार्ट सिटी मिशन स्वीकार करने के 3 साल के भीतर यह शहर दुनिया के बेहतरीन शहरों में आ गया और यहां 10 साल में हम एक शहर को विश्वस्तरीय नहीं बना पाए केवल यही देख लीजिए कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में बुडापेस्ट ने कितनी तरक्की की है एक ही काट से आप बस मेट्रो ट्राम लोकल ट्रेन में सफर कर सकते हैं और पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी बहुत सस्ता किया गया है स्मार्ट सिटी के तहत पैदल चलने और साइकिल से चलने वालों को प्रोत्साहित किया गया है बुडापेस्ट में साइकिल सवारों की संख्या बढ़ती जा रही है और साइकिल ट्रिप की भी बुडापेस्ट शहर का दस्तावेज बताता है कि उसके स्मार्ट सिटी मिशन में स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देना शामिल है इस पर भी जोर है कि सभी को समान अवसर मिले और पलायन कम हो वर्षा जल संचय को भी प्राथमिकता दी गई है मांग आधारित ट्रैफिक की बात की गई है तो बुनियादी ढांचा बदलने के नाम पर जो काम पहले से होता आ रहा था ज्यादातर काम वही होता रहा इसे तुरपाई कहते हैं तालाब का जीर्णोधार करके नदी किनारे रिवर फ्रंट बनाकर कमांड सेंटर बनाकर कोई शहर स्मार्ट नहीं बनता है इन सबके नाम पर जनता बेवकूफ जरूर बनती है