भारत की खुशी कहां खो गई? ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत की गिरती रैंकिंग
क्या भारत बहुत उदास देश है क्या हम लोग सब उदास हैं क्या हम लोग सब डिप्रेशन के शिकार हैं क्या हम लोगों को हंसना अच्छा नहीं लगता क्या हम लोग बहुत परेशान हैं कुछ ऐसी बात अगर आप रिपोर्ट्स देखें तो वह इशारा करने लगी हैं पर यह पूरी तरीके से सच है या नहीं है इन रिपोर्ट्स पर भी तमाम सवाल उठाए गए हैं लेकिन अभी के लिए जब तक ये रिपोर्ट्स चल रही हैं इन सर्कुलेशन हैं इनकी कुछ फाइंडिंग्स आई हैं और वो फाइंडिंग्स थोड़ा सा हैरान और परेशान करती हैं भारत के संदर्भ ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत इतना नीचे क्यो है बहुत सारे और मुल्क हमसे ऊपर क्यों है इतने नीचे कैसे रह गए और क्या भारत इतना उदास है सबसे पहले आपको बता दें हम किस चीज के बारे में बात कर रहे हैं यह जो आप स्क्रीन पर देख रहे हैं यह है वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 अब मीडिया में रिपोर्ट हो रहा है जिसके हिसाब से जो हैप्पीएस्ट कंट्री है वह रिवील हो गई है और वह यूनाइटेड स्टेट्स नहीं है यह भी इन रिपोर्ट्स में अब सामने आ गया है टॉप 10 की लिस्ट अब सामने आ गई है वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 क्या है मैं आपको वो बता दूं दरअसल ये एक रैंकिंग सिस्टम है जो एक रिसर्च पर आधारित है जिसको वेल बीइंग रिसर्च सेंटर यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड ने गैलप और यूनाइटेड नेशन सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉलशंस नेटवर्क के साथ मिलकर के किया है तो इसमें यूएन इनवॉल्वड है इसमें यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड इनवॉल्वड है और उन्होंने अपना यह सर्वे किया है
क्या भारतीय सबसे ज्यादा दुखी हैं? वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025 के चौंकाने वाले आंकड़े
इस सर्वे के जो अह सीईओ हैं गैलेप के उनका नाम है जॉन क्लिफ़न जॉन क्लिप्टन कहते हैं हैप्पीनेस इज़ंट जस्ट अबाउट वेल्थ और ग्रोथ इट इज़ अबाउट ट्रस्ट कनेक्शन एंड नोइंग पीपल हैव योर बैक इसका मतलब यह है कि खुश रहना और खुशी उसका पैसे और आपके जीवन में वृद्धि हो जाने से कोई लेना देना नहीं है अह वो प्रतीक है भरोसे का कनेक्शन का और यह जान करके जीना कि कोई है जो आपके बारे में अच्छा सोच रहा है और कभी अगर आप मुसीबत में फंसे तो आपका साथ निभाएगा या निभाएगी फिर जॉन क्लिफ्टन कहते हैं इफ वी वांट स्ट्रांगर कम्युनिटीज एंड इकॉनमीज़ वी मस्ट इन्वेस्ट इन व्हाट ट्रूली मैटर्स ईच अदर ये उन्होंने बात बोल दी अब उन्होंने ये किस तरीके से किया अ फैक्टर्स क्या-क्या थे वो आपको बता दें तो इसके फैक्टर्स हैं जैसे कि खाना शेयर करना एक सोशल सपोर्ट सिस्टम होना हाउसहोल्ड कंपोजिशन के घर किस तरीके से हैं अ हैप्पीनेस लेवल्स उस हिसाब से साबित होते हैं अ ये रिपोर्ट यह भी बताती है और यह उजागर करती है कि लोगों को एक दूसरे की अच्छाई में कितना भरोसा है कितना विश्वास है वो यह रिपोर्ट बताती है अब आइए आपको टॉप 10 बताते हैं कि सबसे ज्यादा खुश टॉप 10 कंट्रीज कौन सी हैं इस रिपोर्ट के हिसाब से तो सबसे ज्यादा खुश इनके हिसाब से फिनलैंड है फिर है डेनमार्क फिर है आइसलैंड फिर है स्वीडन फिर है नीदरलैंड्स यानी कि टॉप फाइव में यूरोपियन देश सबसे खुश ढेर खुश जो हैं ये यूरोपियन कंट्रीज हैं इसके अलावा कोस्टारिका नॉर्वे इजराइल ल्जमबर्ग और मेक्सिको इसमें भी यूरोपियन कंट्रीज आपको दिख रही हैं लेकिन मेक्सिको भी इसमें है इजराइल भी इसमें है इजराइल खुश है अब ये एक थोड़ी सी विवादास्पद बात इसलिए हो सकती है कि बहुत सारे लोग जो गजा में हैं या वेस्ट बैंक में हैं वो कहेंगे वो खुश क्यों नहीं होंगे दाएं-धाएं गोलियां मार रहे हैं तो वो खुश तो रहेंगे ही
खुशी बनाम उदासी: भारत की 118वीं रैंकिंग क्या दर्शाती है?
लेकिन यह जो रिपोर्ट है इसके पैमाने आपने देख लिए अब इस रिपोर्ट के हिसाब से भारत बहुत नीचे है और अब हम आपको दिखाएंगे कि भारत की रैंकिंग क्या है अ आप जानकर के हैरान हो जाएंगे कि यह रिपोर्ट भारत को 1 से भी नीचे रखती है यह अब आप अपने स्क्रीन पर एक रिपोर्ट देख रहे हैं उसके हिसाब से अ इंडिया हैज़ अपेरेंटली मेड अ स्लाइट इंप्रूवमेंट अप फ्रॉम 126 इन 2024 टू 118 दिस ईयर लेकिन अभी भी हम 118 नंबर पर हैं फिनलैंड टॉप पर है लेकिन हम लोग अभी 118 नंबर पर हैं इस रिपोर्ट के हिसाब से यह रिपोर्ट बहुत क्लियरली और भी सारी चीजें बताती है वो यह कहती है कि पाकिस्तान ईरान और यूक्रेन से भी ज्यादा दुखी हिंदुस्तानी है मतलब पाकिस्तान में ज्यादा हैप्पीनेस है ईरान में भी ज्यादा खुश हैं लोग यूक्रेन में भी लोग ज्यादा खुश हैं हिंदुस्तान इनसे भी पीछे है ये ये रिपोर्ट बताती है रैंकिंग नंबर मैंने आपको बता ही दिया जिसमें मैं आपको ये बताना चाहता हूं कि हिंदुस्तान किन-किन देशों से पीछे है ये बहुत इंटरेस्टिंग है मोजांबिक यूक्रेन ईरान इराक पाकिस्तान पैलेस्टाइन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो युगांडा गांबिया वेनेजुएला हम लोग इन सब से पीछे हैं मतलब हमारी पोजीशन 118वीं है 147 कंट्रीज में से 118 नंबर और इस रिपोर्ट के हिसाब से ये थोड़ा सा सुधरा है मतलब ये पहले और ज्यादा नीचे था हम 126वें नंबर पे थे 2024 में तो 2025 की रैंकिंग में हम लोग 118 हुए हैं अब आप इस बात को सुनकर के खुश होना चाहते हैं या उदास रहना चाहते हैं या अह सवाल पूछना चाहते हैं कि ये 118वें नंबर पे आना भी क्या कोई उपलब्धि है क्या इसको उपलब्धि की तरह देखा जाए अगर हम इसके बारे में चर्चा करेंगे तो हम उदासीनता तो नहीं फैला रहे हैं
तो मोटी-मोटी बात ये है कि हम हैप्पी नेशन नहीं है इस रिपोर्ट के हिसाब से कई बार ऐसी जब रिपोर्ट्स आई हैं जैसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स प्रेस फ्रीडम इंडेक्स तो इस पर भारत की जो सरकार है और जो इकोसिस्टम है जो प्रो गवर्नमेंट है उसका ये कहना है कि एक कंसर्टेड एफर्ट हो रहा है वेस्ट द्वारा और कुछ इंटरनेशनल लोगों द्वारा किया जा रहा है भारत को नीचा दिखाने के लिए और ये रैंकिंग्स बहुत ज्यादा स्क्यूड हैं ये रैंकिंग्स इस तरीके से पैमाने सेट करती हैं कि इसमें कोई सेंस नहीं बनता मतलब ये कोई कैसे मान लेगा हिंदुस्तान में कि पाकिस्तानी हमसे ज्यादा खुश हैं या ईरान और इराक में ऐसी खुशी की लहर दौड़ रही है फिलिस्तीन हमसे जरूरत से ज्यादा खुश है जबकि उनकी आप जानते हैं कितनी कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो उनसे भी हम गए बीते हैं तो वक्तव पर अह जो अह इस तरीके की रिपोर्ट्स हैं उन पर सवाल भी उठते हैं कि आप यह किस आधार पर यह चीज कर रहे हैं तो फिर वो अपने पैरामीटर्स गिनाते हैं कि ये ये ये आधार है हमारी आबादी बहुत ज्यादा है और इस आबादी की वजह से बहुत सारे डायनेमिक्स अलग हो जाते हैं तो ऐसे में एक आमतौर से एक धारणा ये होती है कि आप कोई भी एक ऐसी रिपोर्ट इस तरीके से मैप नहीं कर सकते
हैप्पीनेस रिपोर्ट 2025: क्यों फिनलैंड सबसे खुशहाल और भारत सबसे पीछे?
अब इसका काउंटर आर्गुमेंट इसका कारण काउंटर आर्गुमेंट ये है कि हर चीज सैंपल के आधार पर की जाती है कभी भी आप कोई सर्वेक्षण कराएंगे तो अगर एक देश में देश में 140 करोड़ लोग हैं तो 140 करोड़ लोगों का तो सर्वे नहीं होगा ना क्योंकि अगर वो होगा फिर तो वो सेंसस हो गया सर्वे थोड़ी हुआ सर्वे हमेशा कुछ लोगों के साथ किया जाता है सैंपल साइज थोड़ा होता है उसको साइंटिफिक तरीके से लिया जाता है और फिर उसके आधार से आप अपने नतीजे पर पहुंचते हैं तो उस तरीके से अगर किसी एजेंसी ने अपना सैंपल साइज लिया है और अगर उन्होंने हिंदुस्तान के बारे में यह पाया है तो फिर कुछ तो गड़बड़ है क्या गड़बड़ है क्या राजनीतिक रूप से हम नाख हैं क्या अपने जीवन को लेकर के हम नाख हैं क्या अ अपनी सेहत को लेकर के हम नाख हैं अ क्या जनरली हम लोग थोड़े से परेशान हैं कि चीजें ठीक नहीं हो रही हैं और ये परेशानियां बाकी जगहों से ज्यादा हिंदुस्तान में क्यों हैं ये सारी कुछ इंपॉर्टेंट बातें हैं जो आपके साथ मैं साझा कर रहा हूं अब देखिए एक जरूरी चीज यह है कि हाइपरटेंशन डिप्रेशन ये सारी चीजें कंट्रीब्यूट करती हैं आपकी खुशी और आपके गम में कि आप कहां अपने आप को पाते हैं तो हाइपरटेंशन की समस्या किस तरीके से बढ़ रही है हिंदुस्तान में ये एक फैक्टर हो सकता है मैं हेल्थ पर कंसंट्रेट कर रहा हूं हाइपरटेंशन आज की डेट में एक बहुत बड़ा पब्लिक हेल्थ इशू है हिंदुस्तान में जिसमें अ सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि बहुत ही लो कंट्रोल रेट्स हैं लो कंट्रोल रेट्स का मतलब यह है कि हम उसको रोक नहीं पा रहे हैं और अर्बन और रूरल पॉपुलेशन दोनों में इसका डिस्ट्रेस है और भारत सरकार ने एक गोल सेट किया है कि 2025 तक हाइपरटेंशन को 25% कम कर दिया जाए अब 2025 तो आ गया क्या अभी तक वो कम हुआ है अब वो टारगेट्स पूरे होंगे या नहीं होंगे उसका विश्लेषण हम अलग करेंगे वो हम आपको बताएंगे अ इसकी जो सबसे ज्यादा देखने को मिलता है हाइपरटेंशन के केसेस वो आपको अर्बन इंडिया में ज्यादा और धीरे-धीरे ये रूरल पॉकेट्स में भी बढ़ रहा है ऐसा नहीं है कि हाइपरटेंशन सिर्फ शहरों में ही है अब गांव देहात में भी हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं जा रही हैं हाई बीपी लोगों को होने लगा है लाइफस्टाइल उनका इस तरीके का हो गया है ठीक से नींद नहीं हो पा रही है तमाम तरीके की बीमारियां घर कर गई हैं डायबिटीज की कैपिटल तो हम हैं ही तो ये तो कुछ अपने आप में वजहें हैं हिंदुस्तान में जिससे आपको समझ में आ रहा है कि खुशी ना खुश रहने के पीछे की वजह क्या है अब इन सब चीजों के चलते एक जरूरी बात है अपने जीवन में पॉज पॉजिटिविटी भरने की वजह मेरा यह मानना है कि इस तरीके के सैंपल्स एक एक इशारा जरूर करते हैं ये ना तो पूरी तरीके से आप इनको गलत ठहरा सकते हैं कैसे होगा मतलब जब आप डायबिटीज कैपिटल हैं हाइपरटेंशन कैपिटल हैं अह अह डिप्रेशन कैपिटल हैं मतलब सारी चीजों में तो कैपिटल आप बने जा रहे हैं आप पोल्यूशन कैपिटल हैं
क्या भारत में बढ़ रही उदासी और डिप्रेशन की लहर? रिपोर्ट क्या कहती है?
आपके शहर मतलब एक के बाद एक के बाद एक टॉप 10 में हिंदुस्तान के शहर आते हैं आपकी नदियां गंदी हैं उसमें व्हीकल कॉलिफोर्म है तो तमाम वजह हैं बहुत उदास हो जाने की और ये सारी चीजें आपके साथ मिसअप करता है आपके दिमाग के साथ लेकिन उसी के साथ-साथ ये रिपोर्ट्स एक चीज जो नहीं कैप्चर कर पाती वो है द शेयर एक्सपेंस ऑफ दिस कंट्री अगर हमारे पास बहुत बड़ी आबादी में लोग नाख हैं क्योंकि हमारी आबादी बहुत ज्यादा है तो क्योंकि आबादी बहुत ज्यादा है तो खुश रहने वाले लोगों की भी आबादी ज्यादा है थोड़ा सा पेचीदा मामला है लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि आप समझ गए होंगे जब आप एक टोटल ओवरऑल पिक्चर लेते हैं तो एकदम डिस्टोपियन दुनिया खत्म हो रही है उस तरीके के नैरेटिव के लोग भी मिलेंगे और नहीं लाइट एट द एंड ऑफ द टनल चीजें ठीक हो जाएंगी वक्त समय सब ठीक कर देता है ऐसी बात करने वाले लोग भी मिलेंगे तमाम विघ्न बाधाओं से निकलते हुए भी लोग आगे बढ़ेंगे तो सभी तरीके के लोगों के मिश्रण से बनता है समाज और हमारा यह मानना है कि ये रिपोर्ट एक इशारा जरूर कर रही है जिस पर सरकारों को डिनाइयल के आगे फिर दोहरा दें सरकारों को डिनाइयल से बाहर निकलते हुए इस पर काम करना चाहिए आप नदियां साफ कीजिए हवा साफ कीजिए खाना जो है वह ठीक करिए कैंसर के बढ़ते हुए केसेस को कम करने का प्रयास कीजिए हाइपरटेंशन कैपिटल ना बने डायबिटीज कैपिटल ना बने ब्लड प्रेशर कैपिटल ना बने स्टंटिंग वेस्टिंग कम हो सब चीजें ज्यादा है और यह सारी चीजें मिलकर के इनकम डिस्पैरिटी एक बहुत बड़ा कारण इनकम मतलब जिन लोगों की कमाई कितनी है अ वर्सेस रईसों की कमाई कितनी है गैप क्या बढ़ता जा रहा है सारी चीजें हिंदुस्तान की आबादी की वजह से एक्सेंचुएट हो जाती हैं बढ़ जाती हैं बढ़ी हुई तकलीफ वो बढ़ी हुई दिखती है तो ऐसे में इस रिपोर्ट को पूरी तरीके से नकारना बेवकूफी होगी लोगों को पॉजिटिव रहना चाहिए यह बात सही है लेकिन ऐसी रिपोर्ट्स को इशारा समझ के क्या उस पर सख्ती से काम करना ये ज्यादा जरूरी है या फिर एक टिपिकल रिस्पांस जो हमने इस तरीके की रिपोर्ट्स में देखा है कि ये फर्जी सर्वे हैं ये सर्वे हिंदुस्तान को नीचा दिखाने के लिए किए गए हैं ये वेस्ट का प्रोपेगेंडा है कोई भी चीज इस तरीके से ब्लैक एंड वाइट में प्रस्तुत करने से सिर्फ किसी का प्रोपेगेंडा आगे बढ़ रहा है हिंदुस्तान इस रिपोर्ट के हिसाब से उदास है इस उदास हिंदुस्तान को खुश करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे