2 अप्रैल की चुनौती: क्या मोदी सरकार विपक्ष से सहयोग लेगी?

ट्रंप की धमकी और भारत की रणनीति: क्या मोदी विपक्ष का सहारा लेंगे?


सेकंड अप्रैल यानी 2 अप्रैल की तारीख करीब आने वाली है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को धमकी दी है कि हम भारत पर दोगुना लगान लगाएगा मैं जानता हूं यह आमिर खान की फिल्म लगान का डायलॉग है मगर सेकंड अप्रैल वो तारीख है दोस्तों जब ट्रंप भारत पर कहर भरवाने वाला है ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर भारत ने टैरिफ कम नहीं किए तो हम भारत पर 100 100% टैरिफ लगाएंगे और यह ऐलान उन्होंने दो हफ्तों पहले किया आज मैं आपके सामने क्रांतिकारी सवाल रख रहा हूं दोस्तों क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष की मदद लेंगे इस चुनौती का सामना करने के लिए क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी की मदद लेंगे इस चुनौती का सामना करने के लिए आप में से कई लोगों को अटपटा लग रहा होगा दोस्तों मगर यह अटपटी बात नहीं है भारत का एक लंबा चौड़ा इतिहास रहा है कि देश के सामने जब भी बड़ी समस्या पेश आई है तब सरकार विपक्ष के नेताओं की मदद लेती है मगर पिछले 11 सालों में सरकार और विपक्ष में इतनी लंबी खाई पैदा हो गई है भाजपा की नीतियों की वजह से जहां विपक्ष के नेताओं को लगातार निशाने पर लिया जाता है उन्हें देशद्रोही बताया जाता है एजेंसीज के जरिए उन्हें बर्बाद किया जाता है उनके बैंक खातों को फ्रीज किया जाता है इसके चलते दोनों के बीच जो खाई है उसे पाटना मुश्किल हो गया है मैं आज एक दावा बहुत ही आत्मविश्वास के साथ करना चाहता हूं दोस्तों अगर प्रधानमंत्री ट्रंप जो चुनौती दे रहे हैं उसको लेकर राहुल गांधी की मदद लेंगे ना तो राहुल उनकी मदद जरूर करेंगे मगर बड़ा प्रश्न दोस्तों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए कहा जाए भाजपा के अंदर इस कदर अहंकार है कि वह ऐसा नहीं करने वाले मगर मैंने अभी-अभी आपको बताया कि भारत की एक लंबी चौड़ी परंपरा रही है 



1994 और 2001 से क्या सबक लेगी मोदी सरकार?

आज इतिहास की वो दो घटनाएं मैं आपके सामने पेश करने वाला हूं पहली घटना 1994 की दूसरी बड़ी घटना 2001 की 1994 जब नरसिंहा राव देश के प्रधानमंत्री थे भारत के सामने पाकिस्तान की चुनौती थी मगर नरसिंहा राव जेनेवा किसे भेजते हैं भारत का पक्ष रखने के लिए जिस टीम को भेजा जाता है उस टीम का नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेई कर रहे होते हैं उस टीम का हिस्सा उस वक्त के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद थे दूसरी चुनौती 2001 अमेरिका भारत को धमका रहा होता है और वो धमकी क्या होती है कि हम इराक के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं भारत इसका हिस्सा बने वरना भारत को मुश्किल कीमत चुकानी पड़ेगी मगर वाजपेई क्या करते हैं वाजपेई कांग्रेस और वामपंथियों से सलाह मशवरा करते हैं और इस चुनौती में वह पार पाते हैं यानी कि भारत को जीत मिलती है यह दोनों चुनौतियां क्या थी मैं आपको बतलाऊ दोस्तों क्योंकि मैं आपसे क्यों कह रहा हूं कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से मदद लेंगे इसके पीछे एक वजह है ये दो घटनाएं 1994 और 2001 की आपको समझना पड़ेगा दोस्तों अमेरिका लगातार भारत को धमकी दे रहा है 

अमेरिकी टैरिफ का खतरा: क्या मोदी-राहुल में आएगी एकजुटता?

याद कीजिएगा आज से दो हफ्ते पहले डोनाल्ड ट्रंप ने क्या कहा था कि अमेरिका के साथ गद्दारी सबने की है चाहे दोस्त हो या दुश्मन अब हम टैरिफ लगाएंगे और अमेरिका में करोड़ों अरबों रुपया वापस आएगा मगर क्या आपको अंदाजा है कि भारत को इसका कितना नुकसान होने वाला है सुनिए डल्ड ट्रंप ने क्या कहा था आज से दो हफ्ते पहले बेसिकली आई कॉल एल 2 आ व मे इ एल फ ब आ didn't वा बील fool's नब व i ए देड मी a 2 इ गट बी राशन फ अरिका व ब ड ऑफ बा एवरी कंट्री इन द वर्ल्ड फ्रें एंड फो वी बन रिप ऑफ न ट्रेड वी बन रिप ऑफ न मिलिटरी वी प्रोटेक्ट पीपल एंड दे डोंट डू एथिंग फॉर अस व इट जस्ट सो अनफेयर फर यर्स एंड यर्स ए नाउ मनी ग बी कमिंग बैक टू अस इन द फॉर्म ऑफ टफ आई मीन नस ऑफ बि इट गो टू बी नं नोबडी और यह मत सोचिए उन्होंने बात कह दी और बात वहां खत्म हो गई नहीं दोस्तों कल ही कल ही वाइट हाउस की प्रवक्ता ने वहां के पत्रकारों को निमंत्रण दिया है कि 2 अप्रैल को आइए तमाशा होगा अमेरिका में वापस पैसा आएगा और हम कई देशों पर सख्ती का ऐलान करेंगे और स्वाभाविक सी बात है दोस्तों उन देशों में भारत भी शामिल है 

 भारत बनाम अमेरिका: क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

भारत को तो समझ ही नहीं आ रहा यानी कि भाजपा सरकार को समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें याद कीजिए वाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लिट ने कल क्या धमकी दी सुनिए मायअंडरस्टैंडिंग इ दे हैव स्पोकन एंड द प्रेसिडेंट हैज बन वेरी क्लेर अब हिज इंटेंशन फ एप्रिल 2 इट गोट बी अ बिग डे फॉर आवर कंट्री आई वड एंकरेज ऑल ऑ यूटू बी यर टू कवर द वाइट हाउस दैट डे ऑन एप्रिल 2 बिकॉज देर विल बी बिग अनाउंसमेंट्स व्हेन इट कम्स टू रिसिप्रोकल ट्रेड एंड द प्रेजिडेंट वल बी हाइलाइटिंग द अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेस द वेज इन वच अमेरिका हैज बन रिप ऑफ बा एवरी कंट्री अराउंड दर्ड क्ट फ्रैंकली एंड देर विल बी बिग रिफ्स द ल बी गो इनफेक्ट एंड प्रेसिडेंट ल बी अनाउंसिंग दो ल्फ और बात यहां नहीं रुकती दोस्तों इसकी गाज किसी और पर नहीं किसानों पर गिरेगी याद कीजिएगा अभी कुछ ही दिनों पहले वाइट हाउस ने अपनी धमकी में क्या कहा था वाइट हाउस ने कहा था कि भारत हमारी शराब पर हमारी शराब पर ध्यान से सुनिए मैं क्या कह रहा हूं हमारी शराब पर 150 प्र टैरिफ लगाता है हम भारत के कृषि उत्पादों पर 100% टैरिफ लगाएंगे कहां शराब और कहां किसान मैं आपको बतलाना चाहता हूं कि वाइट हाउस की प्रवक्ता ने क्या कहा था प्रेस सेक्रेटरी कैरोलीन लिट ने कहा देखो भारत को वहां अमेरिकी शराब पर 150 प्र टैरिफ है क्या तुम्हें लगता है कि इससे केंटकी बर्बन को भारत में एक एक्सपोर्ट करने में कोई मदद मिल रही है मुझे तो नहीं लगता भारतीय एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स पर 100% टैरिफ लगाएंगे राष्ट्रपति ट्रंप रेसिप प्रोसिटी में विश्वास रखते हैं और अब समय आ गया है कि हमें एक ऐसा राष्ट्रपति मिले जो सच में अमेरिकी बिजनेस और वर्कर्स के हितों का ध्यान रखे सोच के वि सेरन पैदा होती है दोस्तों कि भारत अमेरिकी शरा पर 150 प्र टैरिफ लगाता है और अब उसकी कीमत किसान चुकाएंगे ऐसा क्यों होता है

2 अप्रैल को भारत पर आर्थिक प्रहार? मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा!

 दोस्तों कि जब भी टैरिफ बढ़ाया जाता है उसकी कीमत आम इंसान गरीब और किसान चुका है अफसोस की बात यह है कि बीजेपी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है क्योंकि यह वह सरकार है जो आपको औरंगजेब में उलझा कर रखना चाहती है मैं फिर आपसे सवाल पूछना चाहता हूं भारत के सामने इतनी बड़ी चुनौती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को निमंत्रण क्यों नहीं देते और यह पहली बार नहीं है मैं आपके सामने कुछ तस्वीरें पेश करना चाहता हूं इस तस्वीर में देखिए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय नरसिंहा राव स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई और उस वक्त के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के साथ बैठे हुए हैं आप जानते हैं इस बैठक का क्या मकसद है बैठक का क्या मकसद मैं आपको बताता हूं भारत के सामने एक चुनौती थी जेनवा में पाकिस्तान भारत को चुनौती दे रहा था मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अगर पाकिस्तान जीत जाता तो भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगते ऊपर से अंतरराष्ट्रीय तौर पर हमारी साख को नुकसान पहुंचता मगर राव क्या करते हैं राव वाजपेई को भेजते हैं इस टीम के अंदर ना सिर्फ सलमान खुर्शीद बल्कि फारूख अब्दुल्ला भी होते हैं वो खबर क्या थी दोस्तों बहुत ही सरल लफ्जों में मैं आपको बता रहा हूं एक एक शप पर गौर कीजिएगा और इंतजार कीजिए मैं आपको बताऊंगा कि उसका भारत को फायदा क्या हुआ आपके स्क्रीन्स पर 1994 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखने के लिए एक प्रतिनिधि मंडल भेजा खासकर पाकिस्तान द्वारा प्रस्तावित एक प्रस्ताव के जवाब में इस दल का नेतृत्व उस वक्त के विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेई ने किया साथ में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला और उस वक्त के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद थे इस मिशन का मकसद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में पाकिस्तान की कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिशों को नाकाम करना था इस प्रतिनिधि मंडल को रणनीतिक रूप से ऐसे नेताओं से तैयार किया गया था जो सभी पार्टियों का एकजुट रुख दिखा सके और भारत की मजबूती को प्रदर्शित कर सकें इसमें अनुभवी राजनैक भी शामिल थे राव का वाजपेई और अब्दुल्ला को शामिल करने का फैसला बेहद अहम था क्योंकि इससे उनकी राजनीतिक साख क्षेत्रीय समझ का फायदा मिला जिससे जेनेवा में भारत की कूटनीतिक कोशिशें सफल हुई 

क्या मोदी सरकार की कूटनीति ट्रंप की धमकी का सामना कर पाएगी?

आखिरकार भारतीय दल ने सदस्य देशों को पाकिस्तान के प्रस्ताव का समर्थन वापस लेने के लिए राजी कर लिया जिससे भारत पर संभावित आर्थिक प्रतिबंधों को टालने में मदद मिली दोस्तों आपके स्क्रीन पर वो तस्वीर है वो ऐतिहासिक जीत इसमें आप देख सकते हैं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई उस वक्त के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के साथ बैठे हुए हैं मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा दोस्तों यह जो पूरा मंजर था उस वक्त टेलीविजन का जमाना नहीं था यानी कि 24 घंटे का टेलीविजन का जमाना नहीं था मगर क्या मंजर था फारूख अब्दुल्ला कश्मीरी में अपनी बात कह रहे थे पाकिस्तानियों की धज्जियां उड़ा दी मगर ये क्यों हो पा रहा था क्योंकि राव की ऐसी सोच थी उनके अंदर ऐसा एंकार नहीं था उन्होंने कहा कि हां हमें एक एकजुट चेहरा पेश करना है हमें एक ऐसा चेहरा पेश करना है कि कश्मीर में हम सब एक हैं और तब उन्होंने इस टीम को भेजा इंतजार कीजिए 2001 में वाजपेई जी ने क्या किया था वो भी मैं आपको बताऊंगा मगर इसका फायदा भारत को क्या हुआ था 1994 में भारत ने जो एक टीम भेजी थी जिसमें विपक्ष के नेता भी शामिल थे इसका फायदा क्या हुआ था आपकी स्क्रीन्स पर 1944 में अटल बिहारी वाजपेई और फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र गए भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की उन्होंने पाकिस्तान द्वारा लाए गए प्रस्ताव को नाकाम कर दिया जिसमें कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर भारत की निंदा की जानी थी अगर यह प्रस्ताव पारित होता तो इससे भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लग जाता ते और कश्मीर मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा उछल सकता था 

अमेरिका का 100% टैरिफ और भारत की दुविधा

खासकर तब जब भारत आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा था संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की बैठक में वाजपेई की मजबूत नेतृत्व क्षमता और ईरान जैसे सहयोगियों का रणनीतिक समर्थन भारत के पक्ष में अहम साबित हुआ भारतीय दल की कोशिशों की वजह से इस प्रस्ताव पर कोई वोटिंग नहीं हुई और आखिरकार इसे वापस ले लिया गया ये भारत के लिए एक बहुत बड़ी जीत थी जिसने कश्मीर मुद्दे पर भारत की स्थिति को और मजबूत कर दिया जब वाजपेई और उनकी टीम वापस लौटे तो इस सफलता को पूरे देश में सराया गया मैं फिर आपसे पूछना चाहता हूं 2 अप्रैल की चुनौती भारत के सामने एक बार फिर है मगर प्रधानमंत्री ने एक बार भी विपक्ष के साथ सहयोग नहीं किया मशवरा नहीं किया क्योंकि आपने इतनी खाया पैदा कर ली है आपके और विपक्ष के बीच में संसद में खड़े होकर यह निशिकांत दुबे वाहियात सांसद यह कहता है कि अमेरिकी साजिश है भारतीय लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के लिए अमेरिका प्रायोजित कर रहा है ऐसी एजेंसीज का जो भारत को नुकसान पहुंचा रही हैं अमेरिका जॉर्ज सोरस राहुल गांधी इस तरह के बयानात निशिकांत दुबे दे रहा था तो जाहिर सी बात है आज की तारीख में देश की ऐसी विदेश नीति है जिसका ना सिर है ना पैर है हमारे विदेश मंत्री एक ऐसे शख्स यानी एस जय शंकर है जिन्हें सिर्फ अंग्रेजी बोलनी आती है जिन्होंने अपने अथाह कूटनीतिक तजुर्बे का बिल्कुल भी कभी प्रयोग नहीं किया इनसे अनर्गल सीटियां बजवाने वाले डायलॉग बुलवा दीजिए मगर कूटनीति इनसे नहीं होती है इनका सिर्फ एक काम है विपक्ष को बदनाम करना मैं फिर पूछ रहा हूं दोस्तों 1994 में क्या हुआ था मैं आपको बतला चुका अब मैं आपको बतला रहा हूं कि 2001 में क्या हुआ था हम बात करने जा रहे हैं 2001 की दोस्तों 2001 अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला होता है 


अमेरिका दो लोगों पर निशाना बनाता है उसामा बिन लादेन और उस वक्त की इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन अमेरिका ईराक पर युद्ध छेड़ने वाला होता है और उस वक्त के जो राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पाकिस्तान और भारत को एक सीधा संदेश देते हैं या तो आप हमारे साथ हैं या आप हमारे साथ नहीं है पाकिस्तान इस धमकी में आ जाता है और आना भी था क्योंकि आप नहीं भूल सकते कि 911 में जो हमले हुए थे उसका जो मास्टरमाइंड था उसामा बिन लादेन वो कहां पाया गया था पाकिस्तान के अबो बाद में 91 को अंजाम देने वाले कई लोग पाकिस्तान में थे सीधी धमकी दी जाती है उस वक्त के सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ को जॉर्ज डब्ल्यू बुश देते हैं कि या तो तुम मेरे साथ हो या बर्बादी का सामना करो मुशर्रफ पूरी तरह से घबरा जाते हैं भारत को धमकी नहीं दी जाती मगर भारत से कहा जाता है कि आप इराक के खिलाफ हमारे युद्ध में शामिल हो हमें 177000 भारतीय सैनिक भेजे 177000 भारत के अंदर राय बटी हुई थी वाजपेई जो उस वक्त के प्रधानमंत्री थे वो कह रहे थे कि नहीं भेजना चाहिए क्योंकि इराक के खिलाफ पर्याप्त सुबूत नहीं इसके अलावा मध्य पूर्व में और इराक में हमारे कई भारतीय बसे हुए थे इराक के साथ हमारे पुराने रिश्ते थे वाजपेई सेे बर्बाद नहीं करना चाहते थे 

1994 और 2001 की तरह क्या इस बार भी राष्ट्रीय एकता दिखेगी?

मगर दूसरी तरफ अडवाणी जो स्वक के डेप्युटी प्राइम मिनिस्टर थे उन्होंने कहा क्यों नहीं हमें अमेरिका की मदद के लिए सैनिकों को भेजना चाहिए यानी कि साफ तौर पर भारत के लिए एक चुनौती वाजपेई क्या करते हैं मगर सबसे पहले दोस्तों समझिए वो चुनौती क्या थी आपके स्क्रीन्स पर एक-एक लफ्ज पर गौर कीजिएगा भारत को ऐसी ही स्थिति 20 साल पहले भी झेलनी पड़ी थी जब एक और अमेरिकी राष्ट्रपति ने नई दिल्ली पर दबाव डालने की कोशिश की थी ताकि वह अपनी संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति छोड़ दे उस वक्त पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने भारत और दूसरे देशों पर राक युद्ध में शामिल होने के लिए जबरदस्त दबाव डाला था लेकिन तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कुशल नेतृत्व क्षमता की वजह से भारत ने अमेरिकी दबाव को टाल दिया मगर आपके जहन में सवाल होगा दोस्तों इस दबाव को कैसे टाला गया तो इसके लिए मैं आपको बतलाना चाहता हूं हुआ क्या वाजपेई जी ने फोन कॉल किया फोन कॉल किसको किया दो वामपंथी नेताओं एबी बर्धन और हर किशन सिंह सुरजीत एक सीपीआई से एक सीपीआई एम से फोन कॉल आता है कि आप मेरे साथ आकर नाश्ता कीजिए एबी ब धन और हरकृष्ण सिंह सुरजीत अचरज में पड़ जाते हैं कि वाजपेई जी ने हमें क्यों बुलाया नाश्ते पे मगर नाश्ते पर क्यों बुलाया गया क्योंकि वाजपेई जी इस पर आम सहमती बनाना चाहते थे और इस बारे में उस वक्त के मीडिया रिपोर्ट्स क्या कहते हैं आपकी स्क्रीन्स पर वाजपेई इस बात को लेकर सतर्क थे कि भारत एक ऐसे युद्ध में ना उलझ जाए जिससे ना तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई समर्थन मिल रहा था और ना ही उसके नतीजे साफ थे साथ ही वे भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और निर्णय लेने की क्षमता बनाए रखने को लेकर भी गंभीर थे द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक उस समय सीपीएम और सीपीआई के महासचिव रहे हरकृष्ण सिंह सुरजीत और एबी बर्धन तब हैरान रह गए जब उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से वाजपेई के साथ नाश्ते के लिए बुलावा मिला और जब बुलाया गया तब वाजपेई जी ने क्या कहा हरकृष्ण सिंह सुरजीत और एबी बर्दन को इंडियन एक्सप्रेस क्या कहता आपके स्क्रीन पर बैठक के दौरान वाजपेई ने सुरजीत और बर्धन को बताया कि अमेरिका का भारी दबाव है और उनसे उनके जारी विरोध प्रदर्शनों के बारे में पूछा इस पर सुरजीत और बर्धन ने कहा कि जनता से उन्हें अच्छा समर्थन मिल रहा है वाजपेई जी ने मुस्कुराते हुए कहा लेकिन मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा इशारा करते हुए कि वे चाहते थे कि विपक्ष और जोर शोर से विरोध करें ताकि वे घरेलू विरोध को आधार बनाकर अमेरिका के दबाव को टाल सके यानी कि वाजपेई ने वामपंथी नेताओं से कहा कि आप जमीन पर इस विरोध को और मजबूत कीजिए ताकि हम अमेरिका को बता सके कि हम इराक पर आपके युद्ध का साथ नहीं दे सकते हैं इसके बाद यह जो पूरा घटनाक्रम है वह शिफ्ट करता है पार्लियामेंट की तरफ आपके स्क्रीन्स पर जल्द ही संसद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में हुए इस हमले की निंदा की गई ये युद्ध के खिलाफ देश की भावना को दर्शाता था वाजपेई ने इस फैसले को कूटनीतिक तरीके से अमेरिका तक पहुंचाया ताकि भारत अमेरिका संबंधों की सकारात्मक दिशा बनी रहे अमेरिका ने भारत के फैसले को स्वीकार किया और जोर दिया कि इससे दोनों देशों के रिश्तों में आ रही बेहतरी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा अब सोचिए दोस्तों अगर वाजपेई अहंकार के चलते विपक्ष से बातचीत नहीं करते और अडवाणी के बहकावे में आकर हमारे सैनिकों को भेज देते तो इसका क्या क्या नुकसान होता पहला 177000 सैनिकों में बड़ी तादाद में हमारे सैनिक मारे जाते नंबर एक नंबर दो इराक के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाते और ना सिर्फ इराक के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ते मध्यपूर्व में जितने भी मुस्लिम देश हैं जहां हमारे कई भारतीय नौकरी कर रहे हैं उनकी जान पर बना जाती तो आप देख रहे हैं वाजपेई की क्या सोचती है आपने अंदाजा लगाया कि नरसिंहा राव की क्या सोच थी के दिमाग में क्या था घटनाक्रम 1994 का था सोचिए अगर पाकिस्तान जीत जाता भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लग जाते दोस्तों यह वह दौर था कि कुछ ही सालों पहले भारत को अपना सोना गिर भी रखना पड़ा था फिर एक शख्स आता है पूर्व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह और भारत की काया पलट कर देता है भारत में लिबरलिज्म की एक लहर आ जाती है उदारवाद की एक लहर आ जाती है हमारी इकॉनमी खुल जाती है और और इकॉनमी खुलने के दौरान अगर भारत पर एक बार फिर आर्थिक प्रतिबंध लग जाते तो आपको अंदाजा है भारत को क्या नुकसान होता यह सोच थी राव की यह सोच थी अटल बिहारी वाजपेई की क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे सबक लेंगे या ले दे वही गाय वही हिंदू मुस्लिम वही मंगलसूत्र वही औरंगजेब उसी में उलझा कर रखना चाहते हैं मैं आपसे बार-बार यह बातें क्यों कहता हूं दोस्तों मैं आपके सामने जो तथ्य रखता हूं वो इतिहास के आधार पर कुछ तथ्य हैं उन्हें आप नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं मोदी जी भी ऐसे नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं इन मुद्दों पर हमें गौर करना पड़ेगा क्या आपको अंदाजा है कि भाजपा की सोच का कितना नुकसान पहुंच रहा है सोचिए अगर विपक्ष और भाजपा के बीच में कड़वाहट ना होती तो सेकंड अप्रैल को जो चुनौती सामने पेश आ रही है भारत उसका सामना करता एकजुट हो के सामना करता ट्रंप को बताता कि हम एक हैं ट्रंप भी जानते हैं कि भारत में दोहराव है ट्रंप भी जानते हैं कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्लैकमेल कर सकता हूं क्योंकि ना एकता है और ना विजन है ना साहस है ट्रंप की धमकी का जवाब देने का और हम यह बार-बार देख चुके हैं हम उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में देख चुके हैं जब ट्रंप भारत को धमकी देते रहे और हमारे प्रधानमंत्री खामोश रहे सवाल बड़ा है दोस्तों मगर कमेंट सेक्शन में बताएं।


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