"रुपये की भाषा पर सियासत:

"रुपये की भाषा पर सियासत: असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की राजनीति

जिन नेताओं का स्वाभिमान इस बात से आहत हो रहा है कि रुपए को तमिल में कैसे लिखा जा रहा है उन उन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि जब लोगों के हाथ में रुपया नहीं होता जब भारत की बड़ी आबादी 255000 महीना भी नहीं कमा पाती भारत के 100 करोड़ लोग जरूरी चीजों के अलावा खरीदने की हालत में नहीं हैं तब उनका भाषा और राष्ट्र को लेकर स्वाभिमान आहत क्यों नहीं होता तब इस देश की मंत्री को यह सब खतरनाक क्यों नहीं लगता लेकिन जैसे ही कुछ ऐसा दिखता है जिसे लेकर भावुकता पैदा की जा सकती है  तमिलनाडु को लेकर जो भावुकता पैदा की जा रही है हो सकता है कि यह डीएमके के लिए भी फायदे की बात हो और बीजेपी के लिए भी लेकिन आप जनता का इसमें क्या भला हो रहा है संस्कृत बनाम तमिल का मैच खेला जा रहा है जबकि सभी को पता है कि 10 साल हो गए मोदी सरकार संस्कृत के नाम पर एक कॉलेज ऐसा नहीं दिखा सकती है जिसे वह इस भाषा के विकास के लिए मॉडल की तरह आपके सामने पेश कर सके अगर ऐसा कोई कॉलेज होता या यूनिवर्सिटी होती तो आज संस्कृत यूनिवर्सिटी की मिसाले दी जा रही होती और यूनिवर्सिटी की रैंकिंग में उसका कोई स्थान या मकाम नजर आता



 तमिलनाडु ने अपने बजट में रुपए के हिंदी संकेतक की जगह तमिल में लिखे जाने वाले रू के चिन्ह का इस्तेमाल कर लिया तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का बयान आ गया कि खतरनाक है क्या यह इतना बड़ा मसला था भारत की बुनियाद इतनी कमजोर है कि आप रुपए को तमिल या बांगला या ओड़िया में लिख दें तो खतरनाक हो जाएगा इस खबर से किसी का स्वाभिमान क्यों नहीं आहत हुआ वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल भारत की उन कंपनियों से कह रहे हैं कि उन चीजों का पता लगाइए जो आप चीन से मंगाते हैं और उसे अमेरिका से भी मंगाया जा सकता है भारत चीन से 100 अरब डॉलर का आयात करता है उसकी तुलना में आयात का आंकड़ा बहुत ज्यादा कम है चीन से आने वाली सस्ती चीजों के दम पर भारत अपना उत्पाद बनाता है और फिर अमेरिका सहित दुनिया भर में निर्यात करता है तो क्या आप सरकार ट्रंप को खुश करने के लिए कंपनियों के हाथ मरोड़ में जा रही है कि आप अमेरिका से आयात कीजिए और भारत में असेंबल कर फिर से अमेरिका निर्यात कीजिए भारत का फार्मा सेक्टर चीन से सॉल्ट का आयात करता है और दवा बनाने के बाद अमेरिका निर्यात करता है चीन से भारत का फार्मा उद्योग 70 फीदी सॉल्ट आयात करता है अमेरिका के दवा बाजार में 35 फीदी हिस्सेदारी भारत के फार्मा सेक्टर की है क्या भारत ट्रंप की खुशी के लिए फार्मा सेक्टर की इस कामयाबी की बलि देने जा रहा है इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट पर बहस होनी चाहिए कि आखिर सरकार ट्रंप के दबाव में क्यों आती लग रही है क्या यह देश अमेरिका में अदानी पर चल रहे मुकदमे की कीमत चुका रहा है अगर नहीं तो इतना डरा सहमा क्यों नजर आ रहा है यह बड़ा मुद्दा है और सवाल है सवाल यह नहीं कि तमिलनाडु ने रुपए को कैसे लिख दिया चीन का मोबाइल ऐप बंद कर रहे थे लेकिन चीन से आयात बढ़ाते गए कभी खुलकर नहीं बताया कि आपका आत्मनिर्भर भारत क्यों फेल कर गया अब अमेरिका धमका रहा है तो अमेरिका से आयात करने के लिए कह रहे हैं भारत की कंपनियों की यह हालत हो गई है कि उन्हें कहां से आयात करना है अब सरकार बताएगी इस बजट में मोदी सरकार ने न्यूक्लियर डील की उपलब्धि को खत्म कर दिया साल 2010 में कितनी बहस हुई मनमोहन सिंह की सरकार ने कानून पास किया कि विदेशी कंपनी जो परमाणु उपकरण और कच्चा माल भारत भेजेगी उसकी खराबी की जवाबदेही उसकी होगी उसे जुर्माना देना होगा मोदी सरकार ने इस शर्त को हटाने की बात कर दी है क्या इससे भारत का बीजेपी का आरएसएस का मीडिया का स्वाभिमान आहत नहीं होता फरवरी में ट्रंप से मिलने जाने से पहले ही मोदी सरकार ने ऐलान किया बीजेपी ने कभी देश को नहीं बताया कि उसकी राय कैसे बदल गई न्यूक्लियर डील के समय बीजेपी ने मनमोहन सिंह सरकार का साथ दिया कि अमेरिका की कंपनी जो सामान देगी उसके सही होने की जवाबदेही भी उसकी होगी तब तो बीजेपी का का तर्क था कि मनमोहन सिंह की सरकार विदेशी कंपनियों पर नकेल नहीं कस रही जबकि हमारे सामने भोपाल गैस कांड का उदाहरण है 2011 में जापान में आई सुनामी के बाद दुनिया भर में परमाणु सुरक्षर बातें चलने लगी उसी संदर्भ में संसद में भी बहस हुई और एनडीए ने मांग की कि नियम सख्त बनाए जाएं उसके बाद 2012 में बिल में यह खंड जोड़ा गया और बाकी देशों के मुकाबले भारत में परमाणु सामग्री भेजने वाली कंपनियों पर अतिरिक्त जवाबदेही बनाई गई 2015 में ओबामा के दौरे से पहले मोदी सरकार ने कहा था इस कानून में कोई बदलाव नहीं होगा तो क्यों बदल दिया गया 2015 में वही मोदी कह रहे हैं कानून नहीं बदलेंगे 20125 में कानून बदल देते हैं और मोदी कुछ कहते भी नहीं इन बातों से देश का स्वाभिमान आहत नहीं होता किसी को पूछना चाहिए लेकिन कहीं कोई बहस नहीं देश के रेल मंत्री अश्विनी वैष्ण मस के स्टारलिंग के स्वागत में ट्वीट कर देते हैं और कुछ देर के बाद डिलीट कर देते हैं स्वागत करने वाले पहले मंत्री वैष्णव थे और डिलीट करने वाले आखिरी मंत्री वैष्णव बाकी मंत्री इस पर बोलने ही नहीं आए उनकी भावनाएं क्या आहत होने के लिए इन दिनों तमिलनाडु की शैर पर गई हैं स्टार लिंक और मस्क को लेकर क्या समझौते हो रहे हैं कांग्रेस राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर सवाल पूछ रही है इन सब पर कोई जवाब नहीं लगता नहीं कि देश में कोई मंत्री है लेकिन जैसे ही तमिलनाडु ने तमिल में रुपए को लिखा वित्त मंत्री बयान देने आ गई क्या इसलिए कि इसमें भावुकता पैदा होगी ध्यान भटकाने का एक और सुनहरा मौका हाथ लग जाएगा और थीम एंड थ्योरी पर लेकर लोग भी तमिल में उस वर्ण का इस्तेमाल कर रही हैं जिसे डीएमके सरकार ने अपने बजट में किया है फिर यह भी निकाल कर लाया गया कि ओड़ीशा की बीजेपी सरकार भी रुपए को हिंदी की जगह अपनी भाषा में लिख रही है बात यह है कि रुपए के लिए एक संकेत चिन्ह है जैसे डॉलर के लिए है यूरो के लिए है इसके बाद भी कोई पैसे के लिए अलग चिन्ह का चुनाव कर ही ले तो इसे लेकर भावुकता पैदा करने का क्या मतलब है आप नजर घुमाइए या गर्दन घुमाइए या पूरा शरीर घुमा घुमा कर चारों दिशाओं में देखिए जहां-जहां भावुकता पैदा करने की गुंजाइश है बीजेपी के नेता मुख्यमंत्री और मोदी सरकार के मंत्री सक्रिय नजर आते हैं लोगों की जेब में रुपए नहीं और इन्हें बात चुप गई कि किसी ने रुपए को कैसे लिख दिया तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है इसके पहले अन्नाद्रमुक की थी बिहार में 2005 से नीतीश कुमार की सरकार है जिसमें लंबे समय तक बीजेपी साझीदार रही है मध्य प्रदेश का उदा उदाहरण भी लेते हैं यहां भी बीजेपी की सरकार 2003 से है 2020 में 1 साल के लिए कांग्रेस की सरकार बनी मगर उसे गिराकर बीजेपी ने अपनी सरकार बना ली यूपी में योगी आदित्यनाथ 2017 से मुख्यमंत्री हैं लेकिन वे अपनी सरकार को डबल इंजन की सरकार कहते हैं मतलब केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार को भी यूपी के खाते में शामिल करते हैं आप खुद देख लीजिए कि तमिलनाडु की बराबरी तीनों राज्य कर सकते हैं क्या डबल इंजन की सरकार तीनों राज्यों में है इतने लंबे समय तक राजनीतिक स्थिरता के बाद भी इन राज्यों में तरक्की कितनी हुई नौकरियां कितनी पैदा हुई इसे लेकर ईमानदार बहस करने की जरूरत है 

"भाषा पर राजनीति, अर्थव्यवस्था पर चुप्पी: तमिल में 'रुपया' लिखने से आहत स्वाभिमान और अनदेखी असली मुद्दों की"

हमने नीति आयोग और अन्य स्त्रोतों से 2023 24 का आंकड़ा लिया मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने ट्वीट किया है कि तमिलनाडु की प्रति व्यक्ति आय ₹ 78000 है नीति आयोग के अनुसार मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 14 42500 ₹ है बिहार की प्रति व्यक्ति आय 0337 है उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 3514 है यूपी बिहार और मध्य प्रदेश को दक्षिण की तरफ से अगर चुनौती मिल रही है तो उे स्वीकार करना चाहिए पिछले पाच वर्षों में भारत की जीडीपी में तमिलनाडु का योगदान 88.7 फ से 99.2 फ के बीच रहा है और बिहार का करीब 3 फीस ही आबादी के हिसाब हिसाब से बिहार तमिलनाडु से बड़ा राज्य है

बिहार की आबादी तमिलनाडु से करीब 5 करोड़ ज्यादा है फिर भी जीडीपी में बिहार का योगदान इतना कम क्यों है क्या इसका मतलब यह नहीं हुआ कि बिहार में मानव संसाधन अपनी क्षमता से काफी कम उत्पादन कर रहा है आखिर क्यों बिहार की जनता उन अवसरों तक नहीं पहुंच पा रही है जहां तक दूसरे राज्य पहुंच गए प्रति व्यक्ति आय के मुकाबले में भी तमिलनाडु महाराष्ट्र से आगे निकल चुका है गुजरात और कर्नाटका की प्रति व्यक्ति आय 330000 से अधिक है यह दोनों राज्य तमिलनाडु से आगे हैं लेकिन यूपी बिहार और मध्य प्रदेश जो हिंदी भाषी प्रदेश कहलाते हैं कब तक पीछे चलते रहेंगे तिरपाल के पीछे छुपने से क्या फायदा सामने से आकर बताना चाहिए कहीं 10 साल से तो कहीं 20 साल से हिंदी प्रदेश में बीजेपी की एक पार्टी की एक विचारधारा की सशक्त सरकार है और क्या तरक्की हुई पी आगराजन तमिलनाडु के आईटी मंत्री हैं काफी समय से कह रहे हैं कि अमीर राज्य राजस्व जमाकर केंद्र को देते हैं और केंद्र सरकार के पास जो राजस्व का भंडार जमा हो रहा है उसमें से तमिलनाडु को कम मिलता है यूपी बिहार को ज्यादा मिलता है केंद्र से मिलने वाले सभी ग्रांट और योजनाओं के तहत यूपी को . 35 पैसे मिलते हैं तो तमिलनाडु को ₹ के बराबर मिलता है 



पी त्यागा राजन का कहना है कि यह कब तक चलेगा जो राज्य अच्छा कर रहे हैं उनसे पैसा लेकर उन राज्यों को दिए जा रहे हैं जो कई दशकों से अच्छा नहीं कर रहे हैं और ऐसे राज्य कब तक बहाने बनाएंगे कब अपने काम का नतीजा दिखाएंगे जब तक अधिक आबादी वाले और कम प्रति व्यक्ति आए वाले राज्य तरक्की नहीं करेंगे इस देश का कोई भविष्य नहीं क्या यह बात बहस के लायक नहीं हिंदी प्रदेश के नेताओं को पता है कि हिंदी भाषी राज्यों में जो काम त्रिपाल से हो सकता है रमजान और होली के डिबेट से वोट बन सकता है तो फैक्ट्री लगाने और आर्थिक अवसर पैदा

करने की जरूरत क्या है आप भी सोचिए कि नेताओं को क्यों इतनी मेहनत करनी चाहिए आपने मस्जिदों को तिरपाल से ढकने वाली खबरें देखी होंगी होली के दिन त्रिपाल से ढककर ऊपर से कुछ और और भीतर से कुछ और की इस राजनीति को समझकर भी हिंदी प्रदेशों को क्या लाभ मिला लेकिन तमिलनाडु के नेताओं को यह बात समझनी होगी जब मस्जिद पर तिरपाल डालने से वोट मिल सकता है तो फैक्ट्री लगाने जिलों में अच्छा कॉलेज बनाने के लिए नेता क्यों मेहनत करें एक के सामने है यूपी और बिहार की राजनीति को कोई भी मंदिर मस्जिद की राजनीति से निकाल नहीं सकता जब निकालेगा तब निकालेगा लेकिन

10-10 साल 20-20 साल इसकी राजनीति में चले जाएंगे तो कहां से इन प्रदेशों का विकास होगा हिंदी प्रदेशों के जिलों में जाइए उनके कॉलेजों की जो हालत है उनमें से मस्जिदों के आगे डांस करने वाले लड़के ही निकल सकते हैं उससे ज्यादा की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए क्या आप जानते हैं कि अगर उत्तर के राज्यों में त्रिपाल से मस्जिदों को ढकने का अभियान चलने लगा तो इसका फायदा तमिलनाडु को पहुंच सकता है हमने देखा कि त्रिपाल का उत्पादन कहां-कहां होता है बहुत ज्यादा जानकारी तो नहीं मिली लेकिन यहां वहां से जो भी मिला उससे यही समझ में

आया कि त्रिपाल के उत्पादन में तमिलनाडु आगे तो है इंडस्ट्री आउटलुक नाम की वेबसाइट पर हमें भारत की सबसे बड़ी त्रिपाल कंपनियों की जानकारी मिली 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत में त्रिपाल बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है अर्जुन र्पोन इंडस्ट्रीज 1989 से तमिलनाडु के सेलम की यह कंपनी त्रिपाल बनाने का काम कर रही है भारत के अलावा कई देशों में इनका सामान जाता है मुमकिन है यह आंकड़े बदलते रहते होंगे मगर तमिलनाडु में त्रिपाल का उद्योग काफी पुराना और कामयाब है आपदाओं के समय अस्थाई शिविर बनाने में बारिश के समय मुंबई के मकानों को ढकने में अनाजों को

ढकने में शामियाने में इस्तेमाल होता है त्रिपाल लेकिन मस्जिद को ढकने में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है इस अवसर का उत्पादन यूपी ने किया 500 साल का इतिहास है त्रिपाल का लेकिन इस तरह से इसका उपयोग हो सकता है इसका श्रेय यूपी पुलिस और मुख्यमंत्री योगी को दिया जाना चाहिए इसलिए तमिलनाडु के नेताओं से आग्रह है कि फालतू में विकास के पैमानों पर उत्तर के राज्यों को चैलेंज कर उन्हें मस्जिद को ढकने के सबसे जरूरी काम से कतई ना भटका एं चुपचाप त्रिपाल का उत्पादन बढ़ाते रह और इस राजनीति से लाभ कमाते रहे देश की यही हालत हो गई है वरना हमने जो बात व्यंग में कही है उसमें हंसी नहीं आती शर्म आती है कब तक धार्मिक उन्माद की यह राजनीति चलेगी त्रिपाल हिंदी प्रदेश का नया भविष्य है स्टालिन की आलोचना बिल्कुल होनी चाहिए कि वे विकास के मामले में चुनौती देकर हिंदी प्रदेशों की राजनीति को धार्मिक उन्माद से हटाने की नापाक कोशिश कर रहे हैं मेरी इस बात से हाउसिंग सोसाइटी के अंकिल लोग खुशी के मारे गेट पर लौटने लग जाएंगे उन्हें वाकई इसमें भारत के उदय की कोई थ्योरी नजर आ जाएगी लेकिन ट्रंप के आगे भारत क्यों सहमा हुआ है इस पर उनसे बोला नहीं जा रहा है आजकल तीर्थ अर्थव्यवस्था की बात होने

लगी है कि इससे अवसर पैदा हो रहे हैं लेकिन इसका कोई मुकम्मल ठोस मूल्यांकन नहीं हो रहा कि 10 करोड़ लोगों के आने से कितने लाख करोड़ का बिजनेस पैदा हो रहा है स्थाई और अस्थाई अगर ऐसा होता तो बनारस और अयोध्या ही अकेले तमिलनाडु की बराबरी कर जाते हैं यह नवंबर 20224 की रिपोर्ट है सीएजी की इसके अनुसार 20224 25 के पहले छह महीने में तमिलनाडु की जीएसटी का संग्रह दर 20 प्र से अधिक रहा इसके लिए तमिलनाडु ने लीकेज रोकी और कई बदलाव किए यूपी और गुजरात में जीएसटी संग्रह की दर 14 फ के आसपास ही रही 2022 में बिहार ने जातिगत

सर्वे किया उसमें यह बात निकल कर आई कि 13 करोड़ की आबादी में से 53 लाख से अधिक लोग दूसरे राज्यों में रहने चले गए यह आबादी का 4.3 फ है यूपी और बिहार को यह भी सर्वे कर लेना चाहिए कि उनके राज्यों में दक्षिण के राज्यों के कितने लोग आ रहे हैं जवाब मिल जाएगा बिहार की आबादी करीब 13.7 करोड़ है और 12.48 करोड़ के पास परिवहन का कोई साधन नहीं केवल 0.44 फीसद के पास चार पहियों वाली गाड़ी है 95 फीस से अधिक बिहार वासियों के पास यातायात का कोई निजी साधन नहीं है क्यों नहीं है इसका जवाब यह है कि बिहार की आबादी का 34 प्र महीने का 6000 या उससे भी कम कमाता है 47 फीस आबादी 00 महीना से भी कम कमाती है आप बिहार की गरीबी का अंदाजा लगाइए और फिर 20 साल से मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान नीतीश कुमार से पूछिए कि आपने कौन सा विकास किया कि आधी आबादी 00 से भी कम कमाती है हर महीने इसलिए नीतीश कुमार अभी भी और हर चुनाव में 20 साल पहले के लॉ एंड ऑर्डर की बात करते हैं जबकि पिछले 5 साल में सोने चांदी की दुकानों से लेकर बैंक डकैती की कितनी घटनाएं हुई हैं इससे जुड़ी खबरों को आप निकालेंगे तो हैरान रह जाएंगे 20 साल पहले क्या हुआ इसे लेकर बिहार में कब तक बात होती रहेगी 2023 से

लेकर 2025 की कुछ खबरें हमने निकाली मुजफ्फरपुर भागलपुर वैशाली के पंजाब नेशनल बैंक में लूट हुई दरभंगा के बिहार ग्रामीण बैंक में लूट होती है समस्तीपुर में बैंक ऑफ बड़ौदा वैशाली में दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक में भी लूट हुई 2023 में औरंगाबाद गोपालगंज और सहरसा के बैंक ऑफ इंडिया में लूट हुई सिवान में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया लूटा गया 2024 के अगस्त में पटना की पीएनबी ब्रांच में बदमाशों ने ₹1 लाख लूटे लखी सराय के बैंक ऑफ इंडिया में भी लूट हुई जुलाई महीने में शेखपुरा में एक्स बैंक में 28 लाख की लूट हुई एक महीने

बाद पटना में पीएनबी की ब्रांच में दिन दहाड़े 21 लाख की लूट हो जाती है दिसंबर में बिहार के एक गैंग ने लखनऊ में इंडियन ओवरसीज बैंक की ब्रांच में करोड़ों की डकैती कर डाली यूपी पुलिस के एनकाउंटर में दो आरोपियों की मौत हो गई 20 साल पहले लालू यादव के समय की घटनाओं को लेकर याद दिलाने की राजनीति करने वाले अपने समय की इन घटनाओं की बात नहीं करेंगे 20 साल के नीतीश राज में बिहार की गरीबी का जो आंकड़ा है उसकी बात नहीं करेंगे जब भी चुनाव आता है या तो मुद्दा जाति की तरफ जाता है या धर्म का नाम लेकर हंगामा मचाता है हिंदी प्रदेशों की राजनीति और वहां की सरकारों में समस्या तो है फ्लाई ओवर और एक्सप्रेसवे बनाकर विकास दिखाया जाता है जबकि उन सड़कों का काम केवल अपने-अपने राज्य से पलायन करने में हो रहा होगा उन सड़कों से बिहार और यूपी में अभी इतना बदलाव नहीं हुआ कि पलायन बंद हो जाए लोग मजदूरी के लिए चंदौली और चंपारण से केरला जाना अभी बंद नहीं नहीं कर रहे हैं आए दिन एक्सप्रेसवे का ऐलान होता रहता है उद्घाटन होता रहता है लेकिन इनसे कितना विकास हुआ बन जाने के बाद कोई हिसाब नहीं दिया जाता नवंबर 2021 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के वक्त ट्वीट किया था कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से यूपी को एक ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाने में मदद मिलेगी लेकिन क्या कोई आंकड़ा यूपी सरकार दे सकती है कि इस पर औद्योगिक उत्पादों की ढुलाई कितनी हो रही है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ही एक ट्वीट में कहा गया है कि देश के कुल एक्सप्रेसवे में 55 फ हिस्सेदारी यूपी की है लेकिन यह भी बताना चाहिए कि यूपी के एक्सप्रेसवे से देश में मालों की ढुलाई का कितना प्रतिशत हो रहा है जब भी नेता किसी एक दो चीजों को लेकर दावा करने लग जाएं तब आपको भी संदेह करना चाहिए क्या वाकई एक्सप्रेसवे से इतना विकास हो जाएगा प्रदेश की अर्थव्यवस्था बेहतर हो रही है एक्सप्रेसवे बनने के बाद उ इलाकों में क्या बदला सड़क के अलावा और कौन सा आर्थिक उत्पादन होने लगा हमने यह वीडियो दक्षिण के राज्यों को स्वर्ग और उत्तर के राज्यों को नरक बताने के लिए नहीं बनाया है बल्कि इसलिए बनाया है कि त्रिपाल और उर्दू के नाम पर राजनीति को नरक मत बनाइए रुपए को कैसे लिखा जाए इसे लेकर भावुकता की नौटंकी छोड़िए कई जगहों पर छपा है कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार सरकारी कर्मचारियों को उर्दू सिखाएगी ट्रेनिंग देने पर विचार किया जा रहा है इस पर बीजेपी वहां क्या सरकार से समर्थन वापस ले लेगी ।

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