इंटरव्यू या आध्यात्मिक संवाद? मोदी-फ्रीडमैन पॉडकास्ट की पड़ताल

 मोदी-फ्रीडमैन पॉडकास्ट: PR स्टंट या गहन वार्तालाप?

3 घंटे के इस इंटरव्यू के बारे में आपने सुन ही लिया होगा या टीवी पर चलता देखा होगा या आपके घर अखबार में छपक आ भी गया होगा पॉडकास्ट कहा जा रहा है उस इंटरव्यू को आप क्या वाकई इंटरव्यू समझकर देख रहे हैं तो याद रखिएगा खुद पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन ने कहा है कि वह आध्यात्मिक तरीके से बात करना चाहता है यानी वह पत्रकार बनकर इंटरव्यू करने नहीं आया था तो क्या 3 घंटे के लिए प्र प्रधानमंत्री निवास किसी बाबा का आश्रम था देश की जनता अपने कई भौतिक और आर्थिक सवालों को लेकर परेशान है और प्रधानमंत्री एक पॉडकास्टर को तीन घंटे का समय दे रहे हैं ताकि वह उन्हें आध्यात्मिक तरीके से समझ सके डू यू गेट माय पॉइंट हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने निखिल कामत के साथ पॉडकास्ट किया और अब लेक्स फ्रीडमैन के साथ 3 घंटे 5 मिनट 41 सेकंड का यह पॉडकास्ट है प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ उनके मंत्री और बीजेपी के नेता इन दिनों पॉडकास्टर खोज रहे हैं जहां वे आराम से बात करते हुए तनाव रहित दिखें और जनता को पता भी ना चले कि इंटरव्यू तो हो गया मगर जवाबदेही से लेकर ज्वलंत मुद्दों पर कोई सवाल नहीं पूछा गया हाहा एंड ही ही में इंटरव्यू खत्म हो गया लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री मोदी ने 80 से अधिक इंटरव्यू दिए लोकसभा के नतीजों ने बता दिया कि पीआर और प्रचार जनता वंस इन ए वाइल समझ लेती है क्या पॉडकास्ट का यह चुनाव गोदी मीडिया के विकल्प के रूप में किया जा रहा है इस पर बात होनी चाहिए कि रेगुलर पत्रकारों को छोड़कर कलाकारों और इन्फ्लुएंस के साथ बातचीत को कैसे देखा जाए क्या हम पॉडकास्ट को पत्रकारिता और इंटरव्यू के फ्रेम में रखकर देख सकते हैं जिसमें जवाबदेही से जुड़े कई सवाल नमक की तरह पानी में घुल गए हैं मणिपुर क्यों नहीं गए आप कहते थे प्रधानमंत्री की सा गिर जाती है जब डॉलर मजबूत हो जाता है $ 87 का होने पर आप कुछ नहीं कहते टैरिफ पर ट्रंप रोज धमका रहे हैं आप कैसे देखते हैं अदानी पर अमेरिका में केस चल रहा है क्या उसकी वजह से भारत सरकार ट्रंप के आगे नतमस्तक है इन सब पर एक भी सवाल नहीं इस सवाल पर तो बात होनी चाहिए कि 3-3 घंटे की यह बातचीत जिसे पॉडकास्ट कहते हैं क्या इंटरव्यू है जिसमें उम्मीद की जा सकती है कि पत्रकार पत्रकार की तरह सवाल करेगा 



पॉडकास्ट बनाम पत्रकारिता: क्या मोदी का इंटरव्यू सवालों से बचाव था?

इसी इंटरव्यू में प्रधान मंत्री मोदी ने सवाल आपके लिए छोड़ा है कि पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए लंदन के कार्यक्रम का उन्होंने हवाला दिया जहां उन्होंने कहा था कि देखिए भाई पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए मक्खी जैसी होनी चाहिए कि मधुमक्खी जैसी होनी चाहिए तो मैंने कहा कि मक्खी जो होती है वह गंध पर बैठती है और गंधी उठाकर फैलाती है मधुमक्खी है जो फूल पर बैठती है और मधु लेकर मधु प्रसारित करती है लेकिन कोई गलत करे तो मधुमक्खी ऐसा डंक देती है कि तीन दिनों तक आप अपना चेहरा किसी को दिखा नहीं सकते चाहते तो प्रधानमंत्री ब्लूमबर्ग के उस पत्रकार का भी उदाहरण दे सकते थे जिसने वाइट हाउस में अदानी को लेकर उनसे पूछ लिया और जवाब देते ना बना प्रधानमंत्री वसुदेव कुटुंबकम करने लग गए प्रधानमंत्री बता सकते थे कि पत्रकार का वह सवाल अदानी को लेकर मक्खी के रूपक में फिट बैठता है या मधुमक्खी के रूपक में पत्रकारिता को लेकर प्रधानमं क्या रूपक चुनते हैं यह बहुत महत्त्वपूर्ण है और सावधानी से देखिए देश की जनता बताए कि गोदी मीडिया की पत्रकारिता क्या है मक्खी की तरह है या मधुमक्खी की तरह है वैसे मधुमक्खी का रूपक भी दूसरे तरीके से आप समझ सकते हैं प्रधानमंत्री ने कहा कि मधुमक्खी में ताकत होती है वह डंक लगा सकती है तो आपको तय करना है कि मधुमक्खी बनकर मंडरा रहे हैं पत्रकार उनसे सवाल पूछ रहे हैं या नहीं मधुमक्खी जिस फूल पर बैठती है वह फूल सरकार विज्ञापन का भी हो सकता है 

मोदी के इंटरव्यू में सवाल कम, आध्यात्मिकता ज्यादा

आप दर्शक इतना तो जानते होंगे कि गोदी चैनलों और अखबारों में जो सरकारी विज्ञापन छपता है उसका पैसा जनता की जेब से जाता है अरबों रुपए आप जनता ने इस गोदी मीडिया को दिए लेकिन इसके भीतर से कोई ऐसा पॉडकास्टर निकल कर नहीं आया जो 12 साल से गुजरात के मुख्यमंत्री और 10 साल से प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को आध्यात्मिक तरीके से समझने के लिए उनसे ती घंटे का समय ले सके गोदी चैनलों के मालिक का काम अब निखि ल कामत और लेक्स फ्रिडमैन का इंटरव्यू चलाना रह गया है जनता एक प्रधानमंत्री के इंटरव्यू में अपने सवालों की झलक शायद देखना चाहती होगी लेकिन क्या यह वैसा इंटरव्यू था इंटरव्यू करने वाला पहले ही ऐलान करता है कि वह प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू करने के लिए 48 घंटे का उपवास रखकर आया है शुरू में ही कोई कह दे तो सवाल अपने आप लाजवंती के पत्तों की तरह कुमला जाते हैं क्या आप इंटरव्यू ऐसे किया जाएगा पूरी दुनिया में लोग धार्मिक कारणों के अलावा वजन घटाने के लिए भी कई-कई घंटों का रोजाना उपवास रखते हैं इसमें ऐसा क्या है पहले ही सवाल से लेक्स फ्रिडमैन साफ कर देते हैं कि वे पत्रकार के तौर पर इंटरव्यू करने नहीं आए तो फिर इस इंटरव्यू को क्या समझा जाए आत्मकथा या आत्म प्रशंसा इसी इंटरव्यू में फ्रीडमैन गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं प्रधानमंत्री मोदी विस्तार से अपने उपवास के बारे में बताते हैं हमने कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रीय पुरोहित और नेशनल प्रिस्ट कहा है अब यहां वे स्पिरिचुअल लीडर की तरह बात करते हुए नजर आ रहे हैं इंटरव्यू करने वाला उपवास करने आया है इतना तो गोदी मीडिया के मालिक और एंकर भी नहीं सोच सके तो क्या हम ऐसा होता हुआ भी देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से इंटरव्यू करने के लिए गोदी मीडिया का एंकर पहले गंगा स्नान करेगा अपने मालिक के साथ फिर जूते चप्पल उतार कर इंटरव्यू करने ने जाएगा सब यहां चूक गए फ्रीडमैन ने बाजी मार ली कोई ऐसा सवाल नहीं जिसे शुरू करने से पहले लेक्स फ्रीडमैन प्रधानमंत्री की भूरी भूरी प्रशंसा नहीं करते हैं इनके सवालों से गोदी मीडिया के मालिकों और संपादकों को लजाने की जरूरत नहीं फ्रीडमैन के सवाल उन्हीं के सवालों की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं आप में इतनी ऊर्जा कहां से आती है सवाल की जगह आप वो संतुलन कैसे ढूंढ लेते हैं इस सवाल ने ले ली है गोदी मीडिया को 10 साल मौका मिला लेकिन वह भी मोदी को गांधी की तरह 21वीं सदी के महान नेताओं में से एक नहीं कह सका फ्रीडमैन पूछते हैं कि अगर हम आधुनिक भारत की नीव के इतिहास पर नजर डालें प्रधानमंत्री गांधी और आप सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक है गोदी मीडिया और आईटी सेल 10 साल से यही कर रहा है नेहरू से लेकर सभी को गायब कर रहा है अब प्रधानमंत्री मोदी को गांधी के मुकाबले खड़ा कर रहे हैं जिनकी पार्टी की एक पूर्वज सां से लेकर कई नेता और शर्म गांधी के हत्यारे को अपना नायक बताने में हिचकते नहीं एक तरफ गांधी को विभाजन का जिम्मेदार बताते नहीं थकते दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी गांधी को हर सदी का महान नेता बताते नहीं थकते लेकिन कभी अपनी विचारधारा की धारा में नाव चला रहे इन विचारकों और समर्थकों से साफ-साफ नहीं कहते कि आप गांधी को लेकर अपनी सोच बदलिए जो मेरी सोच है उस पर चलिए गोसे को हीरो मत मानिए ग्लोबल राजनीति में गांधी का इस्तेमाल छवि बनाने के लिए और लोकल राजनीति में गांधी का इस्तेमाल देश के विभाजन से लेकर हर बुराई का जिम्मेदार बताने के लिए गांधी टू इन वन ट्रांजिस्टर हो गए हैं चाहे तो टेप बजाओ या फिर विविध भारती लगा दो फ्रीडमैन के सवाल प्रधानमंत्री को अपनी छवि बनाने का मौका देते हैं और जवाब में विनम्रता की कतार खड़ी कर देते हैं वे महान नहीं है उनका दायित्व देश से छोटा है वगैरह वगैरह कहते हैं सवाल ही ऐसे हैं कि जवाब में ललित निबंध चालू हो जाता है इसलिए हमने कहा कि इसे आप दो लोगों की निजी बातचीत समझकर देख सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री और पत्रकार के बीच की बातचीत के रूप में नहीं बाबा के आश्रम में एक बाबा का प्रवचन लगता है जीवन आध्यात्म और शक्तियों के विराट स्वरूप को लेकर बातें चल रही हैं प्रधानमंत्री ने आलोचना को लोकतंत्र की यातना बताया लेकिन इंटरव्यू करते समय आलोचना के आधार पर पत्रकारों का चयन साफ दिखता है अब जब साफ है कि प्रधानमंत्री करण थापर जैसे इंटरव्यू करने वालों को दोबारा इंटरव्यू नहीं देंगे इसके लिए वे गोदी चैनलों से लेकर अपनी विचारधारा या अपने समर्थकों से ही इंटरव्यू करवाने की कोशिश करते हैं तो यह भी देखना चाहिए कि लेक्स फ्रिडमैन हैं कौन और इससे पहले वे किनका इंटरव्यू कर चुके हैं इससे भी आपको काफी कुछ समझ में आएगा कि केवल देश में ही गोदी एंकर नहीं खोजे जा रहे इंटरनेशनल लेवल पर भी गोदी पत्रकारों की सूची बन रही है अपने पाले के लोगों के साथ अपनी बात करने के लिए 6 साल से लेक्स फ्रिडमैन इंटरव्यू कर रहे हैं डोनाल्ड ट्रंप उनकी बेटी इवांका ट्रम इलन मस्क जेफ बेजोस विवेक रामास्वामी मार्क जकरबर्ग अमेरिका के पत्रकार टकर कार्लसन यह सारे लोग ट्रंप की राजनीति की धारा में आते हैं और कुछ ट्रंप के आगे नए-नए नतमस्तक भी हुए जा रहे हैं 

पत्रकारिता बनाम प्रचार: लेक्स फ्रीडमैन से मोदी की बातचीत पर सवाल

फ्रीडमैन ने बेन शपर का भी इंटरव्यू किया है जो गोरों की सर्वोच्चता में यकीन करने वालों में नाम है इन्हें वाइट सुप्रीमियम बेन्यामिन नेतनयाहू का इंटरव्यू है क्या फ्रीडमैन का चुनाव इस वजह से भी किया गया होगा क्योंकि ट्रंप की धारा के खेमा के नेता इनसे बात करते रहते हैं जिस तरह से ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव बनाया है दोस्ती की परवाह ना करते हुए भी भारत को टैरिफ का अपराधी कहा अपमान किया क्या अब उस फ्रिडमैन के जरिए ट्रंप प्रशासन या राजनीति के साथ नए तरीके से पीआर की जा रही है जनसंपर्क बनाया जा रहा है नेपाल के नागरिकों ने भी अमेरिका का कानून तोड़ा लेकिन उन्हें वापस भेजते समय ट्रंप ने हथकड़ियां नहीं पहनाई भारत के नागरिकों को भेजते समय अपनी सेना का विमान से भेजा और पांव में बेड़ियां पहना दी यही नहीं प्रधानमंत्री के सामने ट्रंप ने भारत की टैरिफ नीति को लेकर अपमानजनक तरीके से बातें कही सारी दुनिया के सामने ट्रंप ने कह दिया हमने भारत को बेनकाब कर दिया है इसलिए भारत ने टैरिफ घटा दिया है इस अपमान पर भारत के प्रधानमंत्री कुछ नहीं कह सके और आप ध्यान से देखिए कैसे सवाल से भटका जाता है और जवाब देकर घुमाया जाता है तब आपको पता चलेगा कि इंटरव्यू के जरिए क्या खेल खेला जा रहा है फ्रीडमैन का सवाल है फुटबॉल उन बेहतरीन खेलों में से एक है जो ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया को एकजुट करता है और इससे किसी भी खेल की ताकत का पता चलता है आपने हाल ही में अमेरिका का दौरा किया और डोनाल्ड ट्रंप के साथ अपनी दोस्ती को फिर से मजबूत किया एक दोस्त और नेता के रूप में आपको डोनाल्ड ट्रंप के बारे में क्या पसंद है यह सवाल फ्रीडमैन करते हैं ट्रंप का सवाल फुटबॉल और क्रिकेट पर चल रही बातचीत के बाद आता है कायदे से इस संदर्भ में या शुरू के कुछ सवालों में होना चाहिए इस सवाल में भी टैरिफ पर ट्रंप के बयानों का जिक्र नहीं है दोस्ती की बात हो रही है इस तरह से आप देखेंगे कि इंटरव्यू के नाम पर ही इंटरव्यू की विधा को खत्म किया जा रहा है क्या वाकई आपको प्रधानमंत्री मोदी से ट्रंप पर सवाल करने का मौका मिलता तो टैरिफ पर उनकी हरकतों को लेकर नहीं पूछते यही पूछते रह जाते कि अपने दोस्त के बारे में बताइए ना क्या खाते हैं क्या पीते हैं और मोदी सरकार के मंत्री चाहते हैं कि जनता इसे इंटरव्यू के रूप में देखे आप बताइए क्या ट्रंप से जुड़े सवाल को टैरिफ के बिना पूछा जाना चाहिए था पाकिस्तान क्रिकेट टीम की बात करते-करते फुटबॉल की बात करते हैं और फिर उसमें एक लाइन ट्रंप को लेकर जोड़ देते हैं वो सवाल भी कैसा है आपको डोनाल्ड ट्रंप के बारे में क्या पसंद है इसे धूल झोकना नहीं चेहरे पर गुलाल मलना कहते हैं जवाब में प्रधानमंत्री मोदी हाउडी मोदी का जिक्र करते हैं जिसका जिक्र वह वाइट हाउस में इसी फरवरी में ट्रंप के सामने कर चुके हैं अपने जवाब में ट्रंप के बड़पन की बातें बताते हैं कि ट्रंप उनका भाषण नीचे बैठकर सुन रहे थे जब मैंने उनसे कहा कि स्टेडियम का एक चक्कर लगाते हैं तो सुरक्षा की तमाम बंदिशों को तोड़कर मेरे साथ चल पड़े ट्रंप अपना फैसला खुद लेते हैं प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं मेरे लिए यह टच कर गया कि इस व्यक्ति में हिम्मत है यह डिसीजन खुद लेते हैं और दूसरा मोदी पर उनको भरोसा है कि मोदी ले जा रहा है तो चलिए चलते हैं तो यह आपसी विश्वास का भाव यह इतनी हमारी मजबूती मैंने उसी दिन देखा इसी जवाब से हमें संदेह होता है कि यह इंटरव्यू ट्रंप प्रशासन से नए रिश्ते का प्रयास कर रहा है प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि उनका मोदी पर भरोसा था के मोदी ले जा रहा है इसलिए ट्रंप चलते हैं लेकिन इससे इसका जवाब नहीं मिलता कि चुनाव प्रचार से लेकर ट्रंप अभी तक राष्ट्रपति बनने के बाद तक टैरिफ को लेकर इतने उग्र क्यों हैं भारत का नाम लेकर बोलने लग जाते हैं प्रधानमंत्री मोदी पर व्यंग्य करते हैं कि वे बहुत सख्त मूल भाव करने वाले हैं और फिर एक दिन यह भी कह देते हैं कि भारत को एक्सपोज करने वाला उनके जैसा होना चाहिए उन्होंने भारत को बेनकाब कर दिया तो भारत ने टैरिफ कम कर दिया आप दोनों बयान ट्रंप के सुन चुके हैं एक बार फिर से सुनाना चाहता हूं एंड हु हैज अ बेटर नेगोशिएटिंग टैक्टिक व्हेन इट कम्स टू टेस्ट ओ हीज अ मच टफर नेगोशिएटर न मी एंड हीज अ मच बेटर नेगोशिएटर न मी दे नट इन अ कटेस्ट ओके इंडिया चार्जेस अस मासि रिफ्स मासिफ यू कैट इवन सेल एनीथिंग इंट इंडिया इट अमो इट अमो रिस्ट्रिक्टिव इट इज रिस्ट्रिक्टिव यू नो वी डू वेरी लिटल बिजनेस इनसाइड देव अग्री बाय द वे दे वाट कट द टफ्स वे ा फली एको व साफ है प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप से जुड़े तमाम सवालों के बारे में कुछ भी नहीं कहा ना पूछा गया हिंदुस्तान आंख में आंख मिलाकर बात करेगा उनका यह बयान सुनने के बाद ताली योग्य तो लगता है लेकिन चीन और अमेरिका के मामले में भारत ने ऐसा क्या किया है प्रधानमंत्री तो बोल नहीं पा रहे इसी तस्वीर को लेकर यह सवाल उठा कि भारत के प्रधानमंत्री बैठे हैं उनकी सरकार के प्रमुख लोग बैठे हैं और वहां मस्क अपने बहुआ बुत समेत पहुंच गए हैं तो क्या यह कूटनीतिक शिष्टाचार है 



लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अपने इस जवाब में कहते हैं कि परिवार के जैसा माहौल था उन्होंने कहा कि जिन लोगों से मेरा मिलना हुआ चाहे तुलसी जी हो या विवेक जी हो या इलन मस्क हो एक फैमिली लाइक एनवायरमेंट था सब अपने परिवार के साथ मिलने आए ट्रंप इन दिनों भारत को लेकर आक्रमक हैं इस पर कुछ नहीं कहते आक्रमक की जगह प्रधानमंत्री प्रिपेयर्ड शब्द का इस्तेमाल करते हैं जबकि सवाल था कि आप इन लोगों से मिले कोई खास फैसला हुआ क्या फैसले पर जवाब नहीं देते क्योंकि उसी सवाल में यादों के बारे में भी पूछ लिया गया तो प्रधानमंत्री ने अपनी यादें बता दी कि परिवार के जैसा माहौल था इसलिए यह इंटरव्यू नहीं बातचीत थी जिसमें एक पत्रकार आध्यात्मिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी को समझ रहा था और प्रधानमंत्री मोदी दैविक रूप से जवाबों को आध्यात्मिक बना रहे थे दर्शक को तय करना है कि क्या उसे उन सवालों के जवाब मिले जो ट्रंप और मोदी को लेकर दुनिया भर में उठ रहे हैं इस इंटरव्यू को मोदी सरकार के सारे मंत्री ट्वीट कर रहे हैं चैनलों पर चलाया जा रहा है इसलिए इस पर बात जरूरी है प्रधानमंत्री मोदी कह सकते थे कि भारत का जवाब देने का अपना एक तरीका है लेकिन उन्होंने ट्रंप की धमकियों और बेनकाब करने की बात पर चुप्पी साध ली और उनसे सवाल भी नहीं पूछा गया प्रधानमंत्री मोदी की बातें भी कई जगहों पर साधारण लगी जिन्हें वे कई बार चुके हैं कुछ बातों का मतलब समझ नहीं आया जब प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि आज दुनिया एक दूसरे पर निर्भर है क्या यह कोई नई और बड़ी बात है आज ही यह निर्भरता बनी है ऐसी निर्भरता तो कई हजार साल से है ग्लोबल शब्द के चलन में आने के पहले से दुनिया एक दूसरे पर निर्भर थी है और आगे भी रहेगी जबकि इसी इंटरव्यू में गांधी महान है और मोदी भी महान है इस टाइप के सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री त्री मोदी कहते हैं जब वे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बने तो सवाल उठा कि राज्य के मुख्यमंत्री हैं देश कैसे चलाएंगे तो उन्होंने कहा कि सारी विदेश नीति तो एक इंटरव्यू में नहीं समझा सकते और ना जरूरी है प्रधानमंत्री मोदी उस समय के एक इंटरव्यू की बात कर रहे हैं जिसके बारे में आगे बताते हुए कहते हैं कि लेकिन मैं इतना आपको कहता हूं कि हिंदुस्तान ना आंख झुका कर बात करेगा ना आंख उठाकर बात करेगा लेकिन अब हिंदुस्तान आंख में आंख मिलाकर बात करेगा जब चीन पूर्वी लद्दाख की सीमा में अतिक्रमण करता है तब प्रधानमंत्री मोदी ने ही कहा था ना वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है ना ही कोई घुसा हुआ है ना ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है लेक्स फ्रीडमैन ने चीन को लेकर सीधा सवाल किया लेकिन उनके सवाल दोस्ती से आगे नहीं बढ़ पाए ट्रंप से भी दोस्ती के सवाल और शी जिनपिंग को लेकर भी दोस्ती के सवाल फ्रीडमैन पूछते हैं और ये उनके सवाल हैं जो मैं पढ़ रहा हूं आप और श्री जिनपिंग एक दूसरे को दोस्त मानते हैं हाल के तनाव को कम करने और चीन के साथ संवाद और सहयोग फिर से शुरू करने में मदद के लिए उस दोस्ती को कैसे मजबूत किया जा सकता है इस सवाल के जवाब में सारी वास्तविकता एं नदारद कर दी गई प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और चीन के बीच 5 साल का अंतराल आ गया था लेकिन वह अंतराल क्या था किस वजह से आया था पता नहीं चला क्या चीन ने अतिक्रमण किया भारत ने चीन को लाल आंख दिखाया इसी जवाब के आगे प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि दो पड़ोसी देशों के बीच मतभेद तो होते ही लेकिन हमारी कोशिश है कि जो डिफरेंसेस हैं यह डिस्प्यूट में ना बदले उस दिशा में हमारा प्रयास रहता है उसी प्रकार से हम डिस्प्यूट नहीं डायलॉग इसी पर बल देते हैं तभी जाकर एक स्टेबल कोऑपरेटिव रिलेशनशिप और दोनों ही देशों के लिए बेस्ट इंटरेस्ट में है प्रधानमंत्री ओकेज डिसएग्रीमेंट यानी कभी कभार हो जाने वाले मतभेद की बात करते हैं क्या पूर्वी लद्दाख में जो हुआ वह ओकेज डिसएग्रीमेंट था चीन की सेना कहां तक घुसाई उसे रोकने के लिए भारत को कितनी तैनाती करनी पड़ी दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई और जैसा कि प्रधानमंत्री ने खुद कहा है कि अभी विश्वास पूरी तरह बहाल नहीं हुआ है कोई कह सकता है कि प्रधानमंत्री ने चीन की बात कर अमेरिका को दिखा दिया कि चीन से रिश्ते सुधार रहे हैं इस तर्क में भी समस्या है ट्रंप भारत को बेनकाब करने की बात कर रहे हैं आप बोल नहीं पाते चीन से रिश्ते अभी ठीक नहीं हुए हैं इसे ठीक कर अमेरिका को चुनौती कैसे दे रहे हैं क्या अमेरिका को आंख दिखाने के लिए पूर्वी लद्दाख में चीन की हर बात मानने जा रहे हैं ऐसा तो होगा नहीं प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कि 2020 में जो स्थिति बनी थी उसमें सुधार हुआ है हम 2020 के पहले की स्थिति में काम कर रहे हैं धीरे-धीरे विश्वास और ऊर्जा बहाल होगी इसमें थोड़ा समय लगेगा तो इस जवाब को भारत और चीन के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए ना कि अमेरिका को जवाब के रूप में इस बातचीत का विश्लेषण होना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर क्या ठोस बातें कही हैं हर सवाल के जवाब में अपनी सभ्यता से लेकर चीन और अमेरिका की सभ्यता की बातें करते हैं इससे माहौल ठीक बनता है और अच्छी बातें हैं लेकिन इससे जवाब क्या मिलता है निजी जीवन के अनुभवों को कब तक प्रधानमंत्री मोदी रखते रहेंगे कब तक जनता को सुनना पड़ेगा उनके पिता चाय बेचा करते थे पहनने के लिए जूते नहीं थे तब फिर यहbक्यों नहीं बताया जाता कि उनकी अपने परिवार की आर्थिक स्थिति कब बदली उनके बचपन की तस्वीरों से तो नहीं लगता फिर वे अमेरिका कब से जाने लगे बचपन की इतनी बातों में डिग्री की बातें क्यों नहीं आती क्लासमेट की बातें नहीं आती अपने फेवरेट टीचर की बातें नहीं करते साफ है प्रधानमंत्री मोदी अपनी तरफ से अपने जीवन की छवियां गढ़ रहे हैं और मीडिया उसी को बार-बार छाप है जबकि ज्यादातर भारतीयों का जीवन गरीबी और संघर्ष का ही होता है करोड़ों लोग पलायन कर रहे हैं कम मजदूरी में काम करने के लिए मजबूर हैं जो व्यक्ति 12 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हो 10 साल से अधिक समय से देश के प्रधानमंत्री हैं 22 साल से सत्ता के शीर्ष पर हैं लेकिन अभी तक अपने बचपन और गरीबी के किस्से सुनाए जा रहे हैं पहले के प्रधानमंत्री आत्मकथा लिखा कर करते थे आज लगता है आत्मकथा को ही प्रधानमंत्री बना दिया गया है 

गोदी मीडिया से आगे: क्या इंटरनेशनल पॉडकास्ट भी वही भूमिका निभा रहे हैं?

दरअसल यह कुछ नहीं खुद को मिथक में ढालने का प्रयास है जहां आप दैविक रूप में देखे जाने लगे पूरे इंटरव्यू में जनता के जीवन से जुड़े क्या सवाल थे आज लाखों करोड़ों रुपए लोगों के शेयर बाजार में डूब गए कोई सवाल नहीं कि आप 1 साल पहले तक इस मार्केट में पैसा लगाने की बात कर रहे थे इस समय की हालत पर क्या दिलासा देना चाहेंगे वंता को लेकर इतने सवाल उठे उस पर कोई सवाल नहीं इसके लिए प्रधानमंत्री के पास इतना समय कहां से आया कोई सवाल नहीं सफारी करने चले जाते हैं लक्षद्वीप फोटोग्राफी करने चले जाते हैं रोड शो करते हैं रैलियां करते हैं क्या इन सब के लिए वह छुट्टी नहीं लेते या इन सबको भी अपना काम मानते हैं आखिर उनके काम की बात क्यों नहीं होती हर समय उन्हें एक मिथक एक अवतार के रूप में बदलने पर क्यों जोर रहता है बीजेपी के नेताओं के अनुसार 24 घंटे में 20 घंटे काम करते हैं हैं उनके पास तीन-चार घंटे एक बातचीत के लिए हैं यह राहत की बात है कि 20 घंटे काम के नाम पर केवल काम नहीं करते न घंटे पॉडकास्ट में भी लगाते हैं फ्रीडमैन के साथ इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने आध्यात्म जीवन मृत्यु गृहस्थ और साधु के जीवन की निरंतरता पर बात की 22 साल से पद पर जमे एक राजनेता खुद को डिटैचमेंट अना शक्ति से जोड़कर बता रहे हैं जो चुनाव में भाषा की सारी मर्यादा इसलिए लांग जाते हैं कि फिर से सत्ता मिले जो कई बार झूठ बोलते पकड़े गए हैं खुद को अनासक्ति से जोड़कर पेश कर रहे हैं मृत्यु के बारे में कहते हैं निश्चित है इसके डर में क्या जीना यह बिल्कुल सही बात है हर कोई यही कहता है या प्रधानमंत्री मोदी की राय हो सकती है निजी राय वे मृत्यु को लेकर निर्भग हो सकते हैं लेकिन वे भारत के प्रधानमंत्री हैं उनका जीवन सुरक्षित रहे इसके लिए उन्हीं की सरकार साल में करोड़ों रुपए खर्च करती है सैकड़ों जवान अभ्यास करते हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में किसी प्रकार की चूक ना हो और यह राष्ट्रीय दायित्व भी है अपनी सुरक्षा को लेकर कई बार प्रधानमंत्री मोदी भी मुद्दा बना चुके हैं मिसाल के लिए 2022 में पंजाब चुनाव में उन्होंने कह दिया अपने सीएम को थैंक्स कहना मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया उस समय मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी थे प्रधानमंत्री मोदी आखिर प्रधानमंत्री बनकर इंटरव्यू क्यों नहीं दे सकते क्यों उनके इंटरव्यू का ज्यादा बड़ा हिस्सा बचपन की बातें आध्यात्मिक बातों से भर जाता है कभी इस पर सोचिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 साल में एक खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर सके लेकिन अति व्यस्त प्रधानमंत्री मोदी लेक्स फ्रीडमैन के साथ 3 घंटे 5 मिनट 41 सेकंड तक बातचीत करते हैं उनके साथ समय भी बिताते हैं जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं कि कितना समय बिताया इंटरव्यू करने वाले ने 48 घंटे का उपवास रखा माफी चाहता हूं आपसे आप दर्शकों से कहना भूल गया कि इस इंटरव्यू को देखने से पहले आप भी 48 घंटे का उपवास रख लीजिए और हां बताइए कि यह इंटरव्यू था या आप मन की बात सुन रहे थे।


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