इतिहास से सीखें, न कि उसे कुरेदकर लड़ें
इतिहास पर बहुत आजकल वाद-विवाद हो रहा है तो हमने सोचा कि इतिहास के कुछ ऐसे पन्नों को आपके सामने लेकर के आए जिसे जानना बहुत जरूरी है जिसे आप इन्फ्लुएंस ना हो जिसे आप समझे इतिहास से सीखना चाहिए ना कि इतिहास को कुरेत करके आपस में लड़ना चाहिए अभी ताजा विवाद औरंगजेब को लेकर के है और औरंगजेब के नाम पर सड़कों पर लोग हैं नागपुर में तो हिंसा भी हो गई विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल मांग कर रहे हैं कि जो औरंगजेब की कब्र है संभाजी नगर महाराष्ट्र में उसे खोद दिया जाए शुरुआत उसकी खुद देवेंद्र फडनवीस जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं उन्होंने की थी उसके बाद दूसरे कई नेताओं ने ऐसा कहा कि जो औरंगजेब की कद कब्र है उसको उखाड़ फेंकेंगे अब यह तो रही आज की बात लेकिन जब औरंगजेब था औरंगजेब की मृत्यु 1707 में हुई उस वक्त क्या माहौल था औरंगजेब क्या चाहता था
औरंगजेब की कब्र: एक साधारण स्मारक
औरंगजेब ने अपनी कब्र एक बहुत किनारे एक सूफी संत जिसे बहुत मानता था जिसका नाम जिन सूफी संत का नाम काफी लोग आजकल चर्चा कर रहे हैं ज़ैनुद्दीन शिराजी उसके उसके उसकी इच्छा थी उसने अपनी विल में अपनी विल में औरंगजेब ने लिखा था कि उसकी जो कब्र है उस पर मकबरा नहीं बनाया जाना चाहिए आपको बताएं कि औरंगजेब छटा मुगल बादशाह था हम बात करें अकबर की कब्र पर मकबरा है शाहजहां की कब्र पर मकबरा है जैसे वहां मुमताज महल के साथ दफन है ताजमहल में शाहजहां तो मकबरा ही है जहांगीर का मकबरा है लेकिन औरंगजेब ने कहा कि जब उसकी मौत हो जाए तो उसे उसकी कब्र पर कोई मकबरा नहीं बनाया जाए यह किताब है जो बहुत ईजीली अवेलेबल है Flipkart पर जिसे ऑड्रे टुशके ने लिखा है इसका नाम है औरंगजेब द मैन एंड द मिथ यह आपके सामने है इसको आप पढ़ेंगे 200 पेज की किताब है और आराम से पढ़ सकते हैं
इतिहास का गलत इस्तेमाल और मौजूदा विवाद
आजकल हमसब इतिहास न्यूज़ चैनलों से समझ रहे हैं या तो रील में देख रहे हैं लेकिन किताबों में पढ़ना चाहिए इतिहास और खासकर जो ऑथेंटिक हिस्टोरियंस हैं उनकी बात माननी चाहिए तो इस किताब में ऑड्रे टुशके ने मयस्री ए आलमगिरी एक किताब है उस पर उसमें जिक्र है औरंगजेब की विल का औरंगजेब ने क्या कहा कि मरने के बाद उसके उसके जो कब्र है वो कैसी हो तो उस पर जो वसीहत जो औरंगजेब की थी उसमें अपने बेटे जिसका नाम आजम शाह है उसको एक चिट्ठी लिखी थी औरंगजेब ने उस चिट्ठी में लिखा लिखा था कि मुझे खाली जगह पर दफना और मेरा सिर खुला रहने देना क्योंकि जब कोई गुनहगार नंगे सिर खुदा के पास जाता है तो उस पर रहम किया जाता है मेरी लाश को साधारण सफेद खद्दर के कपड़े से ढका जाए कोई छतरी या शाही समारोह ना हो ना ही गाजेबाजे के साथ जुलूस निकाला जाए एक शक्तिशाली बादशाह जिसने मुगल एंपायर को सबसे ज्यादा बढ़ाया उसने तय किया कि कोई ताजमहल मत बनवाओ कोई मकबरा नहीं चाहिए कोई हल्ला हंगामा नहीं चाहिए मैं मरूं तो मेरी एक कच्ची कब्र हो और उस पर एक पेड़ लगा दिया जाए कोई हो अल्लाह कोई बैंड बाजा कोई धमाका नहीं चाहिए औरंगजेब की बहुत उम्र हो गई थी जब मरा बहुत बुजुर्ग हो गया था औरंगजेब और बात करें तो उन्होंने यह बताया जैसे हमने शुरू में बताया कि सूफी शाइन ज़ैनुद्दीन शिराजी के बगल में पास में उन्होंने उन्होंने कहा कि उनको दफना दिया जाए तो खुलदाबाद महाराष्ट्र में जगह जिसे अब संभाजी नगर कर दिया गया है उसमें उन्हें दफना दिया गया और कच्ची कब्र थी जो जानकारी है आप अगर अभी भी वहां जाएंगे तो वहां पर आपको कोई जहां पर इतना पूरा बवाल हो रहा है वैसे अब तो यह मोन्यूमेंट जो है आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया एएसआई ने संरक्षित कर रखा है लेकिन वहां जाएंगे तो कोई बहुत खास साधु सज्जा नहीं है महेशरी आलमगिरी में लिखा गया है कि औरंगजेब जब अपने आखिरी दिनों में काफी रिलीजियस तो था ही वो आप देखते हो स्कल कैप जो पहनते हैं वो खुद सिला करता था तो मैसरी आलमगिरी में इस किताब में लिखा हुआ है कि औरंगजेब अपनी निजी खर्चे के लिए एक बादशाह अपने निजी खर्चे के लिए टोपियां सिला करता था और हाथ से कुरान शरीफ लिखा करता था औरंगजेब की मौत के वक्त उसके कमाए ₹14 और 12 आने थे इसी पैसे से औरंगजेब की कब्र बनवाई गई इसके अलावा औरंगजेब ने ने कुरान शरीफ लिखकर ₹305 कमाए थे जो उसने कहा था कि गरीबों में बांट दिए जाए मैसरी आलमगिरी के मुताबिक औरंग औरंगजेब ने खुलदाबाद क्योंकि सूफी संतों की का केंद्र था था औरंगजेब की इच्छा थी कि मौत के बाद उसके अह गुरु सूफी संत सैयद जेनुद्दीन के पास उसे दफनाया जाए और उस समय जब यह कब्र बनी तो लकड़ी की थी और मिट्टी की कब्र थी और 2004 और 2005 में उन माफ़ कीजिएगा साल सन 2000 माफ़ कीजिएगा सन 1904 और पांच में लॉर्ड कर्जन उस समय अंग्रेजी हुकूमत तो लॉर्ड कर्जन 1904 1905 में गए तो उन्होंने मकबरे के इर्द-गिर्द संगमरमर की ग्रिल बनवाई और उसकी सजावट कराई और इस समय औरंगजेब का जो जो कब्र है वह एक राष्ट्रीय स्मारक है और उसकी देखभाल आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया करता है तो हम ग्राफिक्स के माध्यम से भी आपको दिखा रहे हैं और बहुत सारी चीजें हैं जिनको समझना होगा हमें अगर इस समय औरंगजेब की कब्र खोद भी लेते हैं तो उसे क्या फर्क पड़ता है क्या मिलेगा औरंगजेब की हड्डियां भी अब तक मिट्टी में मिल चुकी होंगी लेकिन औरंगजेब की कब्र खोदेंगे तो इस देश में जरूर मिट्टी में खून गिरेगा हिंसा होगी और वो खून देश के लोगों का होगा चाहे वो किसी भी धर्म के हो तो वही ना हिस्ट्री के से सीखना चाहिए ना कि उसे कुरेद कर लड़ना चाहिए
मराठा नीति और सांस्कृतिक सम्मान
आपस में आपको बताएं कि एक मराठी हिस्टोरियन है उनका नाम वीजी खोबरेकर है उन्होंने मराठा कालखंड में लिखा है कि सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद जो उनके बेटे बहादुर शाह प्रथम थे क्योंकि औरंगजेब ने संभाजी के बेटे संभाजी की हत्या औरंगजेब ने बहुत बेदर्दी और बेरहमी के साथ की थी इसमें कोई शक नहीं है जिसके ऊपर वो छावा फिल्म है और छावा बनने के बाद ही ये पूरा माहौल है छावा वाले तो कमा गए 550 करोड़ अपना Mercedes में एसी खाते हुए मामला बढ़िया चल रहा है दूसरी फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं कोट पैंट पहन के जूता पहन के और यहां औरंगजेब पर चर्चा करवा गए और अब हो हल्ला हंगामा हो रहा है हम यह वीडियो बनाना पड़ रहा है क्योंकि जरूरी है समझाना कि वह प्रोड्यूसर डायरेक्टर उनका तो ऐसे तो है नहीं कि एनजीओ बना करके उन्होंने बनाया कि भाई चलो हम संभाजी के लिए फिल्म बनाते मुफ्त में दिखाते क्यों पैसे लिए 350 400 500 की टिकटें ली दे के पैसा लिया लोगों ने लोग कहते हैं नहीं हम तो समर्थन कर रहे हैं ऐसी फिल्में बननी चाहिए बननी चाहिए क्यों नहीं बननी चाहिए लेकिन हमारे लोग भी तो नहीं पचा पा रहे हैं कि हिस्ट्री से सीखना चाहिए ऐसा क्या सिर्फ औरंगजेब ने संभाजी महाराज की हत्या बेरहमी से की औरंगजेब ने अब लोग कह रहे हैं हिंदू और वगैरह तो औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह की भी बहुत बेदर्दी से हत्या की थी उसकी अपने भाई जो कि मुसलमान था सारी लड़ाई पावर अटेन करने की थी शक्ति की थी जमीन की थी राज बढ़ाने की थी यह हिंदू मुसलमान की लड़ाई नहीं हो रही थी औरंगजेब के लिए बहुत सारे हिंदू मनसबदार उसके जनरल्स थे जो लड़ते थे हिंदू जनरल्स लड़ते थे औरंगजेब के लिए और शिवाजी की सेना में बहुत सारे मुसलमान लड़ रहे थे संभाजी की सेना में लड़ रहे थे बहरहाल जब औरंगजेब ने संभाजी की मौत के बाद उनके बेटे शाहू जी को गिरफ्त में ले लिया था और जब 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई तो बहादुर शाह फर्स्ट ने शाहूजी को रिहा किया और शाहूजी महाराष्ट्र लौटे और मराठा साम्राज्य के नेतृत्व के लिए अपनी चाची ताराबाई के खिलाफ संघर्ष उन्होंने शुरू किया और शाहूजी महाराज जो बेटे थे संभाजी की वो गए थे खुलदाबाद औरंगजेब की कब्र पर और जाकर उन्होंने वहां पर श्रद्धांजलि दी थी यहां हम लोग लड़ रहे हैं अभी संभाजी के बेटे तो चले गए औरंगजेब की कब्र में यहां 350 साल कब्र खोदने में लग गए हम लोग अब बात करें तो कई इतिहासकार हैं एक इतिहासकार हैं रिचर्ड ईटन अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ़ डेकन में लिखते हैं कि मराठाओं में मुगल स्मारकों के लिए सम्मानजनक रवैया था शाहूजी महाराज का यह कदम मराठा नीति को दर्शाता है जिसमें दुश्मनी के बावजूद सांस्कृतिक और राजनीतिक भावनाओं का सम्मान करना जरूरी है अब आपको पता ही है कि एक वक्त के बाद औरंगजेब के बाद तो मुगल जो मुगलिया सल्तनत है वो तो ट्रेंबल हो गई क्रमबल हो गई कमजोर हो गई मतलब उसकी जड़े हिल गई थी नादिर शाह आ गया 1739 में सब लूट के ले गया कोई भी लूट के ले गया मयूर तख्त भी लूट के ले गया बस मुगल शाह मुगल बादशाह नाम के रह गए मराठाओं ने हराया मुगल मुगलों को और मराठाओं की देखरेख में मुगल राज कर रहे थे तो सोचिए मराठे ताकतवर हो गए खुलदाबाद उनके कब्जे में था मराठा के तो मराठा चाहते तो खोद देते औरंगजेब की कब्र क्यों नहीं खोदी उन्होंने कब्र मराठों ने नहीं खोदी तो आप खोदने की बात हो रही कब्र खोदने से मिलेगा नहीं लेकिन ठीक है कर लें जो करना है
इतिहास से सीखें, आपस में न लड़ें
कि मतलब हम लोग थोड़ा इतिहास को भी समझें कि उस दौर में औरंगजेब के बारे में औरंगजेब ने उस समय हिंदुस्तान की सबसे बड़ी और तगड़ी मस्जिद बनाई जो लाहौर में है बादशाही मस्जिद फिर उसने चुना कि उसे एक अनमार्क ग्रेव में किनारे दफना दिया जाए शांति से मिट्टी की कब्र हो वह अपने आप को गुनहगार मानता था औरंगजेब को किसी को डिफेंड नहीं करना चाहिए और मैं बोल रहा हूं किसी को भी किसी को डिफेंड नहीं करना चाहिए औरंगजेब को तो हम बिल्कुल डिफेंड नहीं कर सकते क्योंकि वो एक शासक था उसने क्रूरता की अपने भाई के साथ भी की और जो जो उसका दुश्मन थे वो उसके उनके साथ वो क्रूर था लेकिन सवाल यह भी है कि दोनों भाइयों में शाहजहां के कमजोर होने के बाद लड़ाई थी सक्सेशन की कि कौन बनेगा राजा दोनों में लड़ाई हुई जो जीता वह बन गया सिकंदर बन गया राजा और अगर तारा सिंह को पकड़ लेता औरंगजेब को हरा देता तो शायद वह भी उसको मृत्युदंड देता है पर क्या करता हम नहीं कह सकते हैं तो लड़ाई तो शक्ति पाने की ही थी तो इस समय हम इस बात पर चर्चा करके लड़ सकते हैं एक दूसरे को के साथ मसला ही नहीं है कोई शांति से हैं सब लोग मिलजुलकर रह रहे थे कभी औरंगजेब पर लड़ाई तो गाजी पर लड़ाई तो फलाने पर लड़ाई तो ढिमकाने पर लड़ाई महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं हजारों किसान हर साल आत्महत्या करते हैं लेकिन उस पर क्या चर्चा होती है क्या उस किसानों के लिए बजरंग दल विश्व हिंदू परिषद सड़क पर उतरता है क्या उन किसानों के लिए पत्थरबाजी करते हैं वह लोग जो पत्थरबाजी कर रहे थे वह मुस्लिम समुदाय के लोग थे क्यों नहीं होती है धर्म को लेकर इतने सेंटीमेंटल हो गए हैं हम लोग कोई प्रोड्यूसर कोई डायरेक्टर कोई एक्टर आके फिल्म बनाता है हम इतने प्रभावित हो जाते हैं कि अरे छावा बनने से छावा फिल्म बनने से पहले उखाड़ लेते औरंगजेब की कब्र क्यों नहीं उखाड़ी अचानक से क्यों याद आया कि औरंगजेब की कब्र उखाड़नी है फिल्म देखकर क्या एजेंडा चलाना नहीं है फिल्म बनाने वाले चले गए बना के पैसा कमा के करोड़ों आप लड़ते रहिए सड़क पर फिलहाल हिस्ट्री को लेकर के हम ऐसे तमाम अपडेट्स आपके लिए लेकर आएंगे और पढ़ाई करिए रील देख के इतिहास नहीं समझा जा सकता उसके लिए किताबें पढ़नी पड़ेंगी उसके लिए अच्छे लोगों के साथ बैठना पड़ेगा मिलना पड़ेगा उसे समझना पड़ेगा कि असलियत आखिरकार क्या है और प्रोपगेंडा क्या है ना औरंगजेब है यहां अपने आप को डिफेंड करने के लिए ना शाहूजी महाराज हैं ना संभाजी महाराज हैं ना शिवाजी हैं उस समय बताने के लिए जो इतिहासकार हैं उनसे पढ़ें उनसे सीखें इतिहास को लेकर लड़ना नहीं है यहां बड़े मसले हैं जिन पर बात होनी चाहिए हमें